Book Title: Jain Adhyayan ki Pragati
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 23
________________ जीवराज जैन ग्रन्थमाला में पूर्वोक्त Jainism in South India के अतिरिक्त निम्न संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थ भी सुसंपादित हो कर प्रकाशित हुए हैं-१. नरेन्द्रसेन कृत 'सिद्धान्त सार संग्रह' का संपादन पं० जिनदास ने किया है तथा हिन्दी अनुवाद भी दिया है। इसमें जैन संमत सात तत्त्वों का विवेचन है । २. पद्मनदिकृत 'जंबूदीवपश्नत्ति संगह' का संपादन डॉ० उपाध्ये तथा डॉ० हीरालाल जैन ने किया है तथा हिन्दी अनुवाद पं वालचन्द्र ने किया है। प्रस्तावना में जैन भूगोल के अनेक ग्रन्थों का तथा प्रस्तुत ग्रन्थ के विषय का परिचय दिया है। । 'द्वादशारनय चक्र' का तृतीय भाग प्रकाशित हो गया है। श्राचार्य हरिभद्र का योगविषयक प्राकृत ग्रन्थ 'योगशतक' अभी तक श्रप्रकाशित ही था । डा० इन्दुकला झवेरी ने बड़े परिश्रम से उसका सपादन और गुजराती विवेचन करके उसे प्रकाशित किया है। उसकी भूमिका में वैदिक, बौद्ध और जैन योग मार्ग का तुलनात्मक अध्ययन और प्राचार्य हरिभद्र की जीवनी विस्तार से दी है। ___ डा० उपाध्ये ने 'श्रानन्दसुन्दरीसहक' सपादित किया है। यह ग्रन्थ प्रथम ही प्रकाश में आ रहा है । इसके लेखक हैं धनश्याम और संस्कृत टीकाकार हैं भहनाथ । डा० उपाध्ये ने प्रस्तावना के अतिरिक्त भाषा शास्त्र की दृष्टि से टिप्पणी भी दी हैं। श्राचार्य हेमचन्द्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' के दो पर्वो का हिन्दी अनुवाद श्री कृष्णलाल वर्मा ने किया है और हिन्दी जगत् को इस जैन पौराणिक ग्रन्थ का रसास्वादन कराया है। आशा करता हूँ कि गोडी जी ट्रस्ट के ट्रस्टी इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का पूरा हिन्दी अनुवाद शीघ्र ही प्रकाशित करेंगे। । हाल की 'गाथासप्तशती' का मराठी अनुवाद विस्तृत भूमिका के साथ श्री जोगलेकर ने किया है। भूमिका में भाषा की विवेचना के उपरांत उस समय 'का सामाजिक और राजनैतिक चित्र भी सप्तशती के आधार पर उपस्थित किया गया है । इसके लिये जोगलेकर के हम सब ऋणी रहेगे। जैन शिलालेख सग्रह' का तृतीय भाग डा० गुलावचन्द्र चौधरी की विस्तृत भूमिका के साथ प्रकाशित हुआ है । डा० चौधरी ने जैन संघ के विविध गच्छों . की परंपरा का परिचय शिलालेखो में उल्लिखित तथ्यो के आधार पर दिया है।

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