Book Title: Jain Adhyayan ki Pragati
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 24
________________ २० Pankrantedindian इतना ही नहीं किन्तु जैन धर्म का प्रचार कहाँ कब हुआ इसका भी शिलालेखों में प्राप्त सामग्री के आधार से विवेचन एक इतिहास के विद्वान् की तटस्थता के साथ किया है। , बिकानेर जैन लेख संग्रह' के नाम से भी अगरचन्द्र और भंवरमलजी नाहटा ने बिकानेर के मंदिर, प्रतिमा, धर्मशाला आदि में प्राप्त लेखों को एकत्र करके मुद्रित किया है। उससे अनेक जैन गच्छों और कुलों का परिचय प्राप्त होता है। महावीर ग्रन्थमाला, जयपुर की ओर से 'पुस्तक प्रशस्ति संग्रह' का श्री काशलीवाल द्वारा संपादित तृतीय भाग प्रकाशित हुआ है । उससे कई अद्यावधि अज्ञात जैन ग्रन्थों का पता चलता है। प्रो० एन० वी० वैद्य ने 'नलझहा' और 'बंभदतो' की द्वितीय श्रावृत्ति संपादित और प्रकाशित करके अध्येताओ की कठिनाइयों को दूर किया है। कवि श्री अमर मुनि ने 'सामायिक सूत्र' का विवेचन उदार दृष्टि से किया है । उसका द्वितीय सस्करण प्रकाशित हुआ है। उससे ग्रन्थ की उपादेयता सिद्ध होती है । एक और ग्रन्थ 'प्रकाश की ओर' प्रकाश में आया है जिसमें श्री अमर मुनि के आध्यात्मिक प्रवचनों का संग्रह श्री सुरेश मुनि ने किया है। ये प्रवचन जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श करते हैं और समूचे मानव को उन्नत बनने की प्रेरणा देते हैं। - वर्णी ग्रन्थ माला से 'वर्णी वाणी' का चतुर्थ भाग प्रकाशित हुआ है और द्वितीय भाग का पुनः संस्करण हुना है यह उस संग्रह की उपादेयता सिद्ध करता है। 'रत्नकरंड श्रावकाचार' का हिन्दी भाष्य पहले प्रकाशित हो चुका है अव उसका मराठी अनुवाद भी जीवराज दोशी द्वारा होकर प्रकाशित हो गया है । श्री जुगलकिशोर मुख्तार ने 'अध्यात्म रहस्य' नामक पं० श्राशाधर का ग्रंथ जो अब तक अप्राप्य था खोज कर के हिन्दी विवेचन के साथ सपादित कर के एक बहुमूल्य कृति का उद्धार किया है । जैन योग के जिज्ञासु के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। __ श्री पूरणचंद सामसूखाकृत Lord Mahavira की द्वितीय श्रावृत्ति तेरोपंथी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित हुई है। इसमें लेखक ने संशोधन और परिवर्धन किया है। भगवान महावीर के जीवन के उपरांत जैनधर्म के

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