Book Title: Jain Adhyayan ki Pragati
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 20
________________ प्रसार; ललितकला और तीर्थकर; हिन्दी जैन साहित्य आदि विषय में 'विविध सामग्री का संकलन हुआ है। नये लेखकों के गुरु स्थानीय तीन जीवित विद्वानों की पचास से भी अधिक वर्ष की लेखन सामग्री एकत्र होकर प्रकाशित हुई है-यह इस उपेक्षित क्षेत्र की 'आनन्ददायक घटना है। प्रज्ञाचक्षु श्री पं० सुखलालजी के हिन्दी-गुजराती लेखों का संग्रह तीन भागों ( एक हिन्दी और दो गुजराती) में ढाई हजार से भी अधिक पृष्ठो में 'दर्शन और चिन्तन' नाम से प्रकाशित हुश्रा है। इसमें पंडितजी के लेखों को धर्म और प्रमाज, दार्शनिक मीमांसा, जैनधर्म और दर्शन, परिशीलन, श्रयं, प्रवासकथा, आत्मनिवेदन-इन खण्डों में विभक्त किया -गया है। वाचक को प्रज्ञाचक्षु पडितजी की साहित्य-साधना का नत्र साक्षात्कार होता है तव वह अवाक रह जाता है और जीवन में एक नई प्रेरणा लेकर उन्नति की ओर अग्रसर होता है - ऐसी जीवनी शक्ति इन लेखों में है। कोई चर्चा ऐसी नहीं होती जिसका सत्य और समुन्नत जीवन से स्पर्श न हो। पुरानी चर्चा भी श्राज नई जैसी लगती है क्योकि पंडितजी किली भी विषय का निरूपण उपलब्ध पूरी सामग्री के आधार पर करते हैं और पूर्वग्रह नहीं होता । इस दृष्टि से उनके लेखों का मूल्य कालग्रस्त नहीं होता। . श्री जुगलकिशोर मुख्तार को ऐतिहासिक चर्चाएँ सुविदित हैं। उनके दीघकालीन ऐतिहासिक अन्वेषण कार्य को एकत्र करके जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, नाम से एक ग्रन्थ में प्रकाशित किया गया है। श्री मुख्तार जी की लगन और अध्यवसाय का पता तो इसमें लगता ही है, उपरांत जैन साहित्य और इतिहास की अनेक गुत्थियां सुलझाना श्रमसाध्य होने पर भी इन वयोवृद्ध संगोधक का धैर्य कभी नहीं टूटा यह जब हम उनके लेखो द्वारा जानते हैं तब जीवन में उत्साह लेकर ही पुस्तक से अलग हो सकते हैं। अन्वेषकों के लिये तो यह ग्रन्थ अनिवार्य सा है।। , श्री नाथूरामजी प्रेमीजी के विविध विषयक लेखों का संग्रह 'जैन साहित्य और इतिहास' प्रथम प्रकाशित हो गया था किन्तु उसकी संशोधित और परिचर्धित आवृत्ति अभी हाल में प्रकाशित हुई है। ऐसा संग्रह पुनः प्रकाशित करना पड़ा-यह विद्वानों की तद्विषयक जिज्ञासा और उन लेखों का माहात्म्य सूचित , करना ही है। साथ ही वयोवृद्ध श्री.प्रेमीजी अपने, विषय में कितने

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