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श्राचार्य कालक ही श्यामार्य हैं और अनुयोग कर्ता भी हैं। उस निवन्ध में इतिहास के विद्वानों के लिये विक्रम संवत् और गर्दभिल्ल के विषय में भी पुनः विचार करने की प्रेरणा है।
उसी सोसायटी की एक अन्य पुस्तक है 'स्वाध्याय' । इसमें प्रारमा के विषय में विचारणा महात्मा भगवानदीन ने की है।
__जैन दर्शन के आत्मस्वरूप को केन्द्र में रख कर समन भाव से भारतीय दर्शनसमत प्रात्मा और ईश्वर के स्वरूप का तथा श्राध्यात्मिक साधन का विशद वर्णन पंडित श्री सुखलालजी ने 'अध्यात्म विचारणा' नाम से गुजराती
और हिन्दी में प्रकाशित उनके तीन व्याख्यानों में किया है। यह छोटा-सा किन्तु सारगर्भित ग्रन्थ दार्शनिकों को भारतीय दर्शनों को समन्वयप्रधान दृष्टिः कोण से देखने की दृष्टि देगा इसमें संदेह नहीं है। यह ग्रन्थ अध्यात्म की विचारणा के मूल उद्देश्य आत्मोन्नति की ओर भी अग्रसर करेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान् पं० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य ने 'जैन दर्शन हिन्दी में लिख कर वस्तुतः जैन दर्शन का बड़ा उपकार किया है। संस्कृत जानने वालों को जैन दर्शन का अध्ययन सुलभ था किन्तु हिन्दी में समग्र भाव से जैन दर्शन का परिचय देनेवाली कोई भी पुस्तक नहीं थी। इस महती कमी की पूर्ति का श्रेय पं० महेन्द्र कुमार को है। ग्रन्थ विस्तार से लिखा गया है और दार्शनिक वाद-विवाद में जैनों का कैसा प्रयत्न रहा इसका अच्छा चित्र उपस्थित करने में पंडितजी को सफलता मिली है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन वर्णी प्रन्थमाला में हुआ है।
भगवान् महावीर के ऐतिहासिक विस्तृत चरित्र की संपूर्ति अभी बाकी है। फिर भी डा० उपाये का व्याख्यान Mahavira and His Philosophy of Life भगवान् महावीर के जीवन का जो संदेश है उसे आकर्षक ढंग से उपस्थित करता है और भगवान महावीर के प्रति आदर उत्पन्न करने की पर्याप्त सामग्री देता है। लोकभोग्य जीवन चरित्र लिखने में सिद्धहस्त लेखक श्री { वालाभाई देसाई 'जयभिक्खू ने गुजराती में लोगभोग्य ऐसे भगवान महावीर
के दो जीवन चरित्र निर्ग्रन्थ भगवान महावीर' और 'भगवान् महावीर' । लिखे हैं। उनसे भगवान् महावीर की जीवन साधना का अच्छा परिचय मिलता