Book Title: Jab Murdebhi Jagte Hai
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 9
________________ murroun. ULI0.0.10 । aurivion 1.0.10 करणसिंह : लेकिन ख्याल रखें कि यह लड़ाई हमें शांति से करनी है, क्योंकि बापू गांधी का यह प्रस्ताव है। (पार्श्वभूमि में घोड़-दौड़ की, गोलियों की आवाजें) मेजर डायर (प्रवेश करते हुए) : यू रास्कल हिन्दुस्टानी लोग ! टुम को इन्डिपेन्डन्स होना ? आ हा हा हा - सिपाही ! घोड़े दौड़ाव, लाठी चलाओ, गोली छोड़ाव, एक भी सुअर बचना नहीं मांगटा। करणसिंह : चलाओ गोली, ए कायर कुत्ते ! यह कफ़न तैयार ही है.... करणसिंह : .... ( गोलियाँ झेलते हुए) चलाओ गोली और चलाओ ! ए जालिम और चलाओ !! गोलियाँ नहीं, ये तो फूल हैं फूल, भारत माँ के भेजे हुए..... ! (जख्मी होकर गिर पड़ना) आज़ादसिंह : गोरे बन्दर ! मुझ पर भी गोली क्यों नहीं चलाता ? देख, मेरे पास भी हथियार नहीं । चला.... चला... सोचता क्या है ? गोली चला..... । डायर : ए-हट....! हा हा हा हा । करणसिंह : ( मरते हुए) गोलियाँ नहीं, ये तो फूल हैं फूल .... भारत माँ के भेजे प्रीतमसिंह : प्रीतमसिंह । नज़दीक के..... गाँव में मेरे बूढ़े माँ-बाप हैं और है मेरी.... बहू ! अभी कल ही हमारी शादी हुई .....! आज़ादसिंह : कल ही शादी हुई है आप की ? हे भगवान् ! यह क्या ? प्रीतमसिंह : तो, तेरी हथकड़ी की एक कड़ी को तोड़ने की कोशिश की है माँ ! जय भा... ... ... मै... या । मादरे वतन (अंत) आज़ादसिंह : शेरे पंजाब सरदार करणसिंह ! वीर पृथ्वीसिंह ! प्यारे प्रीतमसिंह ! और आपके साथ लहू बहाकर लेटे हुए अय महान शहीदों ! दिल दहल उठता है आप के इस खून को देखकर ! जी मचल उठता है आपके इस बलिदान को देखकर, लेकिन हम इत्मीनान दिलाते हैं कि आप की शहादत के चिराग को हम कभी बुझने नहीं देंगे । आप की कबर के दियों को हम सदा ही जलता हुआ रखेंगे ..... निहत्थों पर गोलियाँ बरसाने वाली सितमगर गोरी सल्तनत ! इन वीरों को शैतानियत से कुचलकर तू अब चैन की नींद सो नहीं सकेगी । इनके रक्त की बूंद बूंद का तुझे हिसाब देना होगा । आज यहाँ सोया हुआ एक एक वीर हज़ार हज़ार नये वीरों के रूप में फिर से जिन्दा होगा । तेरी बोटी बोटी काटेगा । तेरा नामो-निशाँ मिटा देगा। पार्श्वगीत : अकेला स्वर "अगर कुछ मर्तबा चाहो, मिटा दो अपनी हस्ती को। .. कि दाना खाक में मिलकर गुले-गुलज़ार होता है ।" प्रवक्ता : मिटा दी. हँसते हँसते गोलियाँ खाकर मिटा दी इन्होंने अपनी हस्ती। अपने को मिटाकर, अपने लहू से हिन्दोस्तों के बाग को सींचकर, वे अमर हो गये। उनके रक्त की बुंद बुंद से जलियान बाग में ही नहीं, हिंद के कोने कोने में हज़ारो वीर जन्में - लाखों गुल खिल उठे और..... (अन्त) आज़ादसिंह : वीर करणसिंहजी ! आप का जीवन भी महान और मौत भी ! हँसते हुए, गोलियों को फूल समझते हुए शेर की भाँति सामना करके आप सोये' और.... और..... आप के पीछे आप ही की तरह निर्भय बन, लहू बहाकर लेटे हुए ये सब वीर.....! प्रीतमसिंह : आजाद भैया, इधर आइये, जल्दी इधर आइये । मैं खुशनसीब हूँ मेरे भाइयों कि मेरा यह नाचीज़ शरीर भी मादरे वतन की खिदमत में काम आया । लेकिन..... लेकिन दोस्तों, मेरा एक काम करना - मेरे घरवालों को संदेश देना कि वे मेरे लिये आँसू न बहायें । ऐसी मौत किसे मिलती है ? आजादसिंह : आप का नाम ?

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