Book Title: Jab Murdebhi Jagte Hai
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 18
________________ जब मुर्दे भी जागते हैं। आवश्यकता है - ' इस "जब मुर्दे भी जागते हैं !" के शहीदों की अंतर्वेदना प्रतिबिंबित कर्ता नाटक द्वारा "भ्रष्ट भारत" को बदलने की कामना रखनेवाले . नूतन क्रांतिकारी दिमागों की - / पृथ्वीसिंह: अक्षत्रों से नवज्योति ले फिर धरती पर आयेंगे / निवित भारत की भूमि को चिर जागरित बनायेंगे / " * पिता : अब थोड़ी ही देर है, बहुत थोड़ी। पृथ्वीसिंह: अब हम जायेंगे, वापिस वहाँ जहाँ कोई भेद नहीं, जहाँ सब बराबर है, सब समान है। पार्शवगीत : "जहाँ प्रेम की गंगा बहती है...।" योगेन: सब बराबर, सब समान / वहीं मुझे भी ले चलें / वहाँ ले चलें, मुझे ले चलें। करणसिंह : (महा अंतर्वेदना सह) अफसोस ! सोचा नहीं था ऐसा आजाद भारत, कभी सोचा नहीं था। पृथ्वीसिंह : कम से कम यह देश हमें दिल के दर्द के साथ याद तो करता ! करणसिंह : हम न सही, हमारे खून के दिनों को तो याद करता !! पाश्वगीत : "दिन खून के हमारे, यारों / न भूल जाना / खुशियों में अपनी हम पर आँसू बहाते जाना / सैयाद ने हमारे चुन चुन के गुल को तोड़े वीरान इस चमन में अब गुल खिलात जाना / गोली 4 गोली खाके सोये जलियान बाग में ...... ./ सूनी-(३) सूनी पड़ी कबर पे दिया जलाने जाना / " (शहीदों के प्रेतो का ऊर्ध्वगमन, साथ में पीछे पीछे योगेन का भी ऊपर जाना पिता की उंगली पकड़कर... उसके जाते जाते दीपक का बुझ जाना, दीपनिर्वाण हो जानासांकेतिक मृत्यु हो जाना / हिला देनेवाला, जगा देनेवाला, करुणतम-प्रेरक दृश्य अंत में।) ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः // समाप्त जो (1) इस नाटक को सर्वत्र प्रसारित करें / (2) भारतभर में इस का मंचन करें, है कोई माई के लाल ? प्रतीक्षा है लेखक को लेखक की प्रेरक-क्रान्ति-आत्मा को ! आज के "भ्रष्टाचारमुक्त भारत" निर्माण की दिशा में विशेषकर / लेखक संपर्क : 09611231580 E-mail : pratapkumartoliya@gmail.com (35) (36) RERE

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