Book Title: Jab Murdebhi Jagte Hai
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 16
________________ 2nd Proof UL 16.8.18 इन सोनेवालों को ही जगाना होगा । ( ज़ोरों से) जागो....। अब समाधिस्य वीरात्माओं !! जागो ! कबरों में सोये हुए अमर शहीदों ! जागो वीर करणसिंह ...! जागो प्यारे पिताजी !! जागो "जागो फिर एक बार " दीदी : यह क्या बचपना है योगेन ? उधर देश सारा बिलख रहा है और हाँ मसान में भूत जगाने बैठा है, जिंदे इन्सानों को छोड़ कर तू इन मुर्दों को जगा रहा है ? योगेन : हाँ, दीदी ! आज मुर्दे ही जागेंगे, पत्थर ही पिघलेंगे, जड़ ही चेतन बन जायेंगे ! इन समाधियों से वीर जागेंगे और कबरों से शहीद !! लेकिन ये जीते-जागते भारतवासी नहीं जागेंगे, जरा भी नहीं जागेंगे !!! (कटाक्ष, घोर कटाक्ष-अभियोग ) दीदी : योगेन ! दिमाग ठिकाने पर है या नहीं ? किस दुनिया में जी रहा है ? आसमान से नीचे उतर, छोड़ यह पागलपन और कदम बढ़ा धरती पर नये हिन्द का निर्माण करना है हमें ! योगेन : (अति आवेशभरा प्रतिभाव) निर्माण १ नये हिन्द का निर्माण ? इस देश का निर्माण १ अगर मुझसे यह पूछा जाय कि नूतन हिन्द का निर्माण कब और कैसे होगा तो जवाब में उंगली दिखाऊँ सिर्फ हायड्रोजन बम की ओर 1 दीदी : यह क्या, यह क्या योगेन ? तू और यह सब "? किधर जा रहा है तू ? योगेन : ( आक्रोशपूर्ण 'पागलपनपूर्वक) मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूँ दीदी ! आज तू यह नहीं समझ सकेगी। जा... जा ..... चली जा यहाँ से तू घर चली जा । दीदी : यह क्या हो गया योगेन को ? यह क्या ? मैं जाकर बूढ़े चाचा को भेजती हूँ - यह पागल ऐसे नहीं मानेगा। (जाती है) योगेन : (विद्रोहपूर्ण) बम ... ! विध्वंस ... ! विनाश ! विनाश चाहिये इस देश को तभी पृथ्वी का भार हल्का होगा। तभी देश का परिवर्तन होगा, तभी भारत का नवनिर्माण होगा । मिटा दो ! मिटा दो ! मिटा दो इस दुनिया को, जला दो इस दुनिया को..... । पावगीत - "जला दो जला दो इसे फूंक डालो..... ये दुनिया ।" ( 'प्यासा' गीत ) (शहीद घोष ) नहीं, अहिंसा, प्रेम, करुणा (२) (31) पाश्वध्वनि : समूह घोष 2nd Proof. Dr. 15.6.18 चौथा दृश्य (अंतिम) "दीनों की भूख जागेगी । (२) शहीदों की रूह जागेगी । (२) धधकती आग बरसेगी । (१) धरा को भस्म कर देगी । (१) " ( गंभीर दिव्य दृश्य : शहीदों का आगमन ) योगेन : मेरा कोट..... मेरा कोट..... कहाँ जा रहा है मेरा कोट ? कोन....? कौन? कौन खींच रहा है मेरा हाथ ? पिता पिता देवीप्रसाद - प्रेत डरो मत! बेटा योगेन, डरो मत : मैं तुम्हारा देवीप्रसाद हूँ । योगेन : कौन पिताजी ? आप ? पिताजी..... पिताजी ? पिता : हाँ, बेटा मैं । तेरा सारा हाल हम जानते हैं। तेरी दर्दभरी आवाज़ सुनकर हमारे पत्थर के हृदय भी पिघल गये हैं। लेकिन बेटा ! 'नाश नहि, निर्माण' । सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा के द्वारा निर्माण । हिंसा नहीं, अहिंसा, प्रेम..... सभी से प्रेम..... नफरत करनेवालों से भी प्रेम !! योगेन प्रेम ? प्रेम का बदला इस देशने तीन गोलियों से दिया हे बापू गांधी को ! V पिता : यदि ऐसा न होता तो प्रेम की कीमत क्या रहती बेटा ? गांधी बापू तो मरकर भी नहीं मरे। वे जी रहे हैं अपनी अहिंसा के जरिये । योगेन : अहिंसा ? झूठ, पिताजी ! बिल्कुल झूठ । इस देशने बापू का खून करने के बाद उनकी अहिंसा का भी खून किया है । भारत का पत्थर पत्थर भी कहेगा कि गांधी के देश में भी अहिंसा के नाम पर गोलियाँ चली हैं। यहाँ अहिंसा नहीं, सत्य नहीं हिंसा है, झूठ है, दंभ है, अंधेर है.... । (32) "

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