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2nd Proot, Ut. 15.6.18
ठहरो ! अय पूंजपतियों, ठहरो !! तुम्हारा भी एक दिन आता है जब मजबूरन बराबर हो जाना पड़ेगा ।
दीदी योगेन चल अब घर चल ।
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योगेन घर ? अब मैं घर चलकर क्या करूँ ? वहाँ तेरे सिवा अब कौन है मेरा ? अब तो यही मेरा घर बनेगा। पिता गये, माता गई, अब मैं भी... ( रुद्रध्वनि) दीदी : यह क्या बक रहा है योगेन ? चल स्वस्थ हो जा। ऐसा पागलपन नहीं किया करते। माँ तो गई, अब हम पीछे रहनेवालों को अपना कर्तव्य करना होता
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है अपनी बड़ी माँ के लिये, भारत माँ के लिये। देख, माँ हमारे लिये काम छोड़ गई है।
योगेन : क्या दीदी अंतिम समय पर माँ कुछ कह गई है क्या ?
दीदी हाँ, यही कि तुम दोनों साथ मिलकर इस दरिद्र देश का काम करना और अपने पिता का नाम रोशन करना ।
योगेन : इस दरिद्र देश का काम और पिता का नाम .....( कटाक्ष से )
दीदी : पिताजी भी बयालीस में गुरुद्वारा के पास जब गोली खाकर पड़े तो ऐसा ही कहते थे ।
योगेन अच्छा, और क्या कहा था माँ ने ?
दीदी : यही कि अगर तुम ऐसा कर सकोगे तो मेरी आत्मा को ही नहीं, पिताजी की आत्मा को भी बहुत शान्ति मिलेगी। भगवान तुम्हारा कल्याण करे ! योगेन : ( आक्रोश में ) देश का काम और पिता का नाम देश का काम और पिता का नाम हो ।
माँ...! माँ ! तू कहती है देश का काम करने के लिये मगर करें भी कैसे ? पावगीत : “सुलग रही है आग । "
(पार्श्ववाणियाँ)
नटु अखबार आज का ताझा अखबार 'पंजाब समाचार' ।
प्रताप : अखबारों से खबरें निकल रही हैं।
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इंदिरा : आग देश भर में आग
प्रताप : पंजाबी सूबे के लिये अकालियों का विद्रोह । इंदिरा : दिल्ली के करोड़पति की भारी टैक्सचोरी ।
(29)
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2nd Proof. Dt. 15.5.18
अनूप : भारत की सरहद पर उड़ते हुए चीनी गिद्दड़ ।
प्रताप कलकत्ता पुलिस के एन्टी करप्शन अक्सर को दी गयी रिश्वत । इंदिरा : बम्बई में टी.बी. के रोगियों की बाढ़ |
अनूप अश्लील सिनेमाओं ने भ्रष्ट किये हुए छात्र ।
इंदिरा आग देश भर में आग ।
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प्रताप : ( गीत ) "सुलग रही है आग रे बाबू सुलग रही है आग ।
शोषण से लाचार है भारत शासन से बेज़ार है भारत । दुश्मन से हैरान है भारत चीख रहा चीख रहा, चीख रहा है जलता भारत"
जागो....! अब नव युग के मानव निकल पड़े बेलाग सुलग रही है आग । दीदी आग ! चारों और आग !! और फिर भी इसके बीच होते हुए भी भारत आज सोया पड़ा है !!! यह आग उसे भस्म न कर डालेगी ? क्या वह जल जाना चाहता है ? जलकर भस्म हो जाने के बाद ही जागना चाहता है ? योगेन : (आक्रोश से ) जल जाने दे... ! जलकर भस्म हो जाने के बाद ही शायद वह जागे...... ! हं आग! देश का काम, पिता का नाम..... !!! मगर माँ.... माँ 1 दीदी : भैया, देख उधर देशभर में आग लगी हुई है और तू यहाँ शोक में डूबा रहा है ! अभी तू पूछता था न माँ से कि देश का काम कैसे करूँ ? तो देख, माँ ही इस आग की ओर उंगली दिखा रही है । देख रहा है या नहीं इस आग को ?
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योगेन : देखता हूँ दीदी, देखता हूँ कि देशभर में आग लगी हुई है। लेकिन - दीदी : लेकिन क्या ? चल उठ, हमें देश को जगाना है, इस आग से बचाना है। माँ और बापू की इच्छा को पूरी करना है। V
योगेन (क्रोध और कटाक्षपूर्वक ) किनको जगाना है, इन भारतवासियों को ? असंभव दीदी, असंभव । ये अब नहीं जागेंगे। ये जागनेवाले नहीं जागेंगे। यह तो गीता का देश ठहरा दीदी ! इन्होंने 'या निशा सर्वभूतानाम्' के सूत्र का आकंठ
पान कर लिया है- "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"। उसके नशे से वे अब कैसे जाग सकते हैं दीदी ? अब तो इन शहीदों को ही जगाना है,