Book Title: Jab Murdebhi Jagte Hai
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 13
________________ zna Proof. Dt. 15.6.18 आंटिया : अरी जवा दे नी बावा फालटू वाट ने । चालनी, जल्दी करनी । आज शहीदोंने फूल चढ़ावीने चलनी स्टेशन.... आं य गाडीनो टाइम थइ गयो छ । खन्ना : तो क्या, आज भी ट्यूशन क्लास नहीं भरेंगे? .. आंटिया : नहीं । आवडो ग्रेत एक्टर रोज रोज थोड़ो मिलवानो है ? देवेन्दर : क्यों किसे देखने जाना है ? .. खन्ना : मालूम नहीं ? आज राजकपूर आ रहे हैं। देवेन्दर : Oh, I see ! आंटिया : चलनी टू बी डेवेन्डर I N.C.C. केम्पने आज मार नी गोली । देवेन्दर : एक्सक्यूज़ मी । आप दोनों जाइये । मेरे लिये एन.सी.सी. का फर्ज़ बड़ा है, राजकपूर नहीं । मुझे पंजाबी सूबेवालों के इन्तज़ाम में ड्यूटी पर जाना है। गुड बाय । ( जाता है) खन्ना : अरे जरा ठहर । शहीदों की समाधि पर यह फूल तो चढ़ा। देवेन्दर : एन.सी.सी. का फर्ज़ ही मेरे लिये शहीदों की पूजा है? आंटिया : मोटो एन.सी.सी. वालो देख्यो न होय टो। अमे पण डेशनुं काम करिये छ । देशना प्रोतंक्शननो मोनोपोली तें ज राख्यो है। खन्ना : "हम भी तो है जवान, इस मुल्क के बागबान। हमें भी है आज़ादी की पिछान, क्या हम हैं लोग महान् !" आंटिया : महान.... महान ! ग्रेत बावा ग्रेत । चलनी जल्दी करनी । “जहाँ शहीदों की पूजा होती है।" हम इस देश के वासी हैं । (मज़ाक में गाता है) योगेन ( वंदनाभरा कटाक्ष): ये हैं इस देश के शहीद-पूजक नवजवान, भावि भारत के बागबान । राजकपूर है इनके इष्टदेवता और शरारतें हैं इनकी साधना । फिर भी वे आते हैं शहीदों पर फूल चढ़ाने - उन बड़े लोगों की तरह ! मगर नहीं, उनकी इस अवस्था के लिये ज़्यादा जिम्मेदार वे नहीं, जिम्मेदार है इस देश के समाज का ढाँचा और तालीम का ढंग । आज़ादी के कितने वर्ष गुज़र गये, लेकिन इस देश में वही बेढंगी बदतर तालीम-शिक्षा हो, सैंकड़ों लोग ऐश करते हों, करोड़ों लोग भूखों मरते हों। __ इस देश के लोगों के पास है विलायती सरज़मीं की योजनाएँ, विदेशी पाँखें और अंधेरी आँखें; तंग दिल और बंद दिमाग । क्षुद्र मन और जर्जर जीवन । कैसे हैं ये जीत जागते भारत के इन्सान ? गांधी बापू...! प्यारे पिताजी ! तुम यह सब (25) 2nd Proor. UL. 10.6.18 . नहीं देखते क्या ? तुम फिर से जागकर यहाँ नहीं आ सकते ? क्या तुम भी इन भारतवासियों की तरह सो गये, तुम भी? V(अद्भुत स्वप्न द्रश्य) योगेन : पंछी ! गांधी बापू का संदेश तु लाया है ? क्या लिखा है बापू ने ? पार्शवगीत : "पंछी लेकर आया मेरे बापू का संदेश । कैसे हैं मेरे अनुयायी, मैं ने गद्दी जिन को दिलवायी ? सेवा का जो दम भरते है मुझको याद किया करते हैं। उनको मेरी ओर से कहना : अपने वचन पर कायम रहना। भूल न जाये मरते दम तक, जनसेवाका उद्देश्य... पंछी जनसेवा का उद्देश्य.... पंछी पंछी मेरे बापू का लाया है संदेश । उनके परों पर लिखा है : कैसा अपना देश....? कैसा भारत देश ? कैसा अपना देश?" योगेन : जवाब भी क्या दूँ बापू ! आप नहीं जानते इस देश की हालत ? फिर भी जवाब चाहते हो तो लिख देता हूँ । सुनिये -- पार्शवगीत : "आप के अनुयायी जीते हैं, कुछ अच्छा खाते-पीते हैं । खादी भी पहना करते हैं, आप को याद किया करते हैं। अब तक राम का राज्य न आया, वह तेरा स्वराज्य न आया। भूखों और नंगों का भारत, तेरा भिखमंगों का भारत । झूठन पर झगड़ा होता है, कुत्ता और बच्चा लड़ता है। मन में बहुत ही कुछ आता है, संदेशा पर बढ़ जाता है। जाने में नहीं देर लगाना, जाकर सारा हाल सुनाना । पंछी ! बापू को दे देना हम सब के प्रणाम - बापूजी से कहियो पंछी मोरी राम राम !" सरला दीदी : (प्रवेश) योगेन... ओ योगेन अरे इसका कोट यहाँ है, लेकिन वह कहाँ गया ? ओह ! यहाँ सोया पड़ा है ! भैया - ओ भैया ! पंछी ! आ गया ? आ गया ? योगेन : (भावावेश में : स्वप्न पंछी से) बापू को पत्र दे दिया? (26)

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