Book Title: Hua So Nyaya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 6
________________ हुआ सो न्याय ३ न? पर वह तो समझे कि अन्याय करता है। ऐसा कुदरत का न्याय क्या है ? पिछला लेन-देन होवे उन सबको इकट्ठा कर दें । वर्तमान में स्त्री पति को परेशान करती हो, वह कुदरती न्याय है । यह औरत बहुत बुरी है और औरत क्या समझे पति बुरा है । लेकिन कुदरत का न्याय ही है यह । प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : और आप शिकायत करने आयें। मैं शिकायत नहीं सुनता, इसका कारण क्या ? प्रश्नकर्ता : अब मालुम हुआ किं यही न्याय है । उलझन सुलझाये कुदरत ! दादाश्री : यह हमारी खोंजें है न सभी ! भेगने वाले की भूल, देखों खोज कितनी अच्छी है। किसीसे टकराव में आना नहीं। फिर व्यवहार में न्याय मत खोजना । नियम कैसा है कि जैसे उसझन की हों, वह उलझन उसी प्रकार ही सुलझे फिर । अन्याय पूर्वक की गयी उलझन हो तो अन्याय से सुलझे और न्याय से की हो तो न्याय से सुलझे । ऐसी ये उलझन सुलझती हैं सभी । ऐर लोग उसमें न्याय खोजते हैं। मुए न्याय क्या खोजता है, अदालत गया के जैसा ? ! अरे मूर्ख, अन्याय पूवर्क उलझन तूने पैदा की और अब तू न्यायपूर्वक सुलझाने चला है ? किस प्रकार होगा वह ? वह तो नौ से किया तो गुणा नौ से भागने देते पर ही भूल संख्या आये । उलझन कई, उलझकर पड़ा है सब । इसलिए ये मेरे शब्द जिसने धारण किये हो उसको काम बन जाये न। प्रश्नकर्ता: हाँ दादा, ये दो-तीन शब्द धारण किये हो और जरुरतमंद मनुष्य होवे, उसका काम हो जाये । दादाश्री : काम हो जाये । जरुरत से ज्यादा खक्कतमंद नहीं हो न, तो काम हो जाये । हुआ सो न्याय प्रश्नकर्ता: व्यवहार में " तू न्याय मत खोजना" और "भोगने वाले की भूल " ये दो सूत्र धारण किये हैं । दादाश्री : न्याय खोजना नहीं, वह वाक्य तो धारण कर लिया न तो उसका सब औलराइट हो जाये । यह न्याय खोजते हैं उससे ही सब उसझनें खड़ी हो जाती हैं । पुण्योदय से खूनी भी छूटो निर्दोष.... प्रश्नकर्ता: कोई किसीका खून करे, तो भी न्याय ही कहला ये ? दादाश्री : न्याय के बाहर कुछ चलता नहीं । न्याय ही कहलाये भगवानकी भाषा में । सरकारकी भाषा नें नहीं कहलाये । यह लोक भाषा में नहीं कहलाये । लोक भाषा में तो खून करने वाले को पकड़ लाये कि यही गुनहगार है । और भगवानकी भाषा में क्या कहें ? तब कहे, नहीं, खून करनेवाला जब पकड़ा जायेगा, तब फिर वह गुनहगार गिना जायेगा ! हालमें तो वह पकड़ा नहीं गया और यह पकड़ा गया! आपकी समख में नहीं आया ? प्रश्नकर्ता: कोर्ट में कोई मनुण्य खून करकें निर्दोष बरी हो जाता है. वह उसके पूर्वकर्म का दबदा लेता है कि फिर उसकें पुण्य से वह इस प्रकार छूट जाता है ? क्या है यह ? दादाश्री : वह पुण्य और पूर्वकर्म का बदला एक ही कहलाये ऐ उसका पुण्य था इसलिए छूट गया ओर किसी ने वहीं किया हो तो भी बँध (फँस जाये, जेल जाना पड़े, वह उसके पाप का उदय ऐ उसमें छूटकारा ही नहीं । बाकी यह जो दुनिया है, इन अदालतो में कभी अन्याय होवे, मगर कुदरर ने इस दुनिया में अन्याय किया नहीं है। न्याय ही होती (होता) है । न्याय के बाहर कुदरत कभी गई नहीं है। फिर बवंडर दो लाये कि एक लाये, मगर न्याय में ही होती है । प्रश्नकर्ता: आपकी द्रष्टि में विनाश होते द्रश्य जो दिखते है वे हमारे

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