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हुआ सो न्याय वकील..... ! उसमें उपर से वकील भी गालियाँ दे । ज्यादा समय जलदी देरी हो जाये न तब तुम्हारे अक्ल नहीं है गधे के जैसे हो.... फाँसा खाये मुआ ? इसके बजाय कुदरत का न्याय समझ लिया, दादा ने कहा है वह न्याय तो हल निकल जाये न ?
और कोर्ट में जाने में हर्ज नहीं है, कोर्ट में जाओ मगर उसके साथ बैठकर चाय पीयो । सब इस प्रकार चलो । वह नहीं माने तो कहना भलेही हमारी चाय मत ी, लेकिन पास बैठ ? कोर्टमें जाने में हर्ज नहीं, मगर प्रेमपूर्वक...
प्रश्रकर्ता : ऐसे लोग हमारा विश्वासघात भीकरे न ऐसे मनुष्य जो
हो....
हुआ सो न्याय है न, वह उसे रेग्युलेशन में (नियमनमें) ही रखता है । एस पल भर अन्याय नहीं होता । पर लोगो को अन्याय किस प्रकार लगता है ? फिर वह न्याय खोजे । अबे मुए, जितना देता है वही न्याय । तुझे दो नहीं दिये और पाँच क्यों दिए । देता है वही न्याय । क्योंकि पहले का लेन-देन है सब आमने-सामने? गुत्थी ही हे, हिसाब है । अथाँत न्याय तो थरमामीटर (थर्मामीटर) है । थरमामीटर से देख लेना कि मैंने पहले न्याय नहीं किया था इसलिए मुझे अन्याय हुआ है यह । इसलिए थरमामीटर का दोब नहीं है । आपको क्या लगता है ? यह मेरी बात कुछ हेल्प (मदद) करे ?
प्रश्नकर्ता : बहुत हेल्प (मदद) करे ।।
दादाश्री: संसार में न्याय मत खोजना । जो हो रहा है वह न्याय । हमें देखना है कि यह क्या हो रहा है । तब कहे, पचास बीघा के बजाय पाँच बीघा देता है । भाई से कहें, बराबर है । अब तू खुश है न ? वह कहे, हाँ? फिर दूसरे दिन साथ में भोजन लें उठे बैठे । वह हिसाब है । हिसाब से बाहर तो कोई नहीं है । बाप संतानो से हिसाब लिए बिना छोडता नहीं । यह तो हिसाब ही है, रिश्तेदारी नहीं है, आप रिश्तेदारी समझ बैठे थे ?ऐ
(16) कुछल मारा वह भी न्याय ! एक आदमी बसमें चढ़ने के लिए राईट साईड में खड़ा है, वह रोड के नीचे खड़ा है । रोंग साईड में एक बस आई । वह उसके उपर चढ़ गई और उसको मार डाला । यह कैसा न्याय कहलाये ?
प्रश्नकर्ता : ड्राईवर ने कुचल मारा, लोग तो ऐसा ही कहेंगे ।
दादाश्री : हाँ, अथाँत उल्टे रास्ते आकरमारा, गुनाह किया । सीधी राह आकर मारा होता तो भी उस प्रकार का गनाह कहलाता । यह तो उपर से डबल गुनाह करता है, इसे कुदरत कहती है, करेक्ट (सही) किया है । शोरगुल मचाओगे तो व्यर्थ जायेगा । पहले का हिसाब चुकता कर दिया । अब यह समझे नहीं न । सारी जिन्दगी तोड़ फोड़ में जाये । अदालतें और
दादाश्री : कुछ कर सके ऐसा नहीं । मनुष्य से कुछ हो सके ऐसा नहीं है । यदि आप ईमानदार है तो आपको कोई कुझ कर सके ऐसा नहीं है । ऐसा इस संसार का कानून है, प्योर होने पर फिर कोई करनेवाला, कुछ रहेगा नहीं । इसलिए भूल सुधारना चाहो तो सुधार लो ।
आग्रह छोड़ा वह जीता ! (17) इस संसार में तू न्याय देखने जाता है ? हुआ सो ही न्याय । तमाचे मारे तब इसने मुझ पर अन्याय किया ऐसा नहीं, लेकिन वह हुआ सो ही न्याय, ऐसा जब समझ में आयेगा तब यह सब फैसला आयेगा ।
हुआ सो न्याय नहीं कहोगे तो बुद्धि उछल-कूद, उछल-कूद करती रहेगी । अनंत जन्मों से यह बुद्धि गड़बड़ करती है, मतभेद खड़े करती है । वास्तव में बोलने का वक्त ही नहीं आये । हमें कुछ कहने का समय ही नहीं आये । जो छोड़ दे वह जीता । वह अपनी जिम्मेदारी पर आग्रह रखता है । बुद्धि गई यह किस तरह मालूम होगा ? न्याय खोजने मत जाना । जो हुआ उसे न्याय कहें, अर्थात वह बुद्धि जाती रही कहलाये । बुद्धि क्या करें । न्याय खोजती फिरे । और इसी कारन (कारण) यह संसार खड़ा रहा है इसलिए