Book Title: Hua So Nyaya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation

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Page 15
________________ २२ हुआ सो न्याय लगता है कुदरत की व्यवस्था अच्छी है ? कुदरत सब न्याय ही करती है । अर्थात सैद्धांतिक बाते है यह सभी । बुद्धि हटाने के लिए यह एक ही कानून है । जो हो रहा है उसे न्याय मानोगे उससे बुद्धि जाती रहेगी । बद्धि कहाँ तक जिवित रहेगी ? हो रहा है उसमें न्याय खोजने निकले तब तक बुद्धि जिवित रहेगी । यह तो बुद्धि भी समझ जाये । बुद्धि को लाज आये फिर । उसे भी लाज आये, अरे! अब यह स्वामी ही ऐसा बोलते है ईससे तो अपना ठिकाना कर लेना अच्छा । मत खोजना न्याय इसमें ! प्रश्नकर्ता : बुद्धि निकालनी ही है । क्योंकि बहुत मार खिलाती है । दादाश्री : तब बुद्धि निकालनी हो तो बुद्धि कुछ जाती नहीं रहेगी । बुद्धि तो हम उसके कारन (कारण) निकाले न तो यह कार्य जाता रहेगा । बुद्धि वह कार्य है, उसके कारन (कारण) निकाले न तो यह कार्य जाता रहेगा। बुद्धि वह कार्य है, उसके कारन (कारण) कौन-से ? जो हुआ, वास्तवमें क्या हुआ, उसे न्याय कहने में आये, तब वह जाती रहेगी । जगत क्या कहता है ? वास्तव में हुआ उसे चला लेना पडेगा । और न्याय खोजते रहने पर झगड़े चलते रहेंगे. अर्थात बिना परिवर्तन के बुद्धि नहीं जायेगी । बद्धि जाने का मार्ग. उसके कारनो (कारणो) का सेवन नहीं करेंगे तो बुद्धि हटाने का कार्य नहीं होगा। प्रश्रकर्ता : आपने बताया न कि बुद्धि कार्य है और उसके कारन (कारण) खोजे तो वह कार्य बद हो जाये । (22) दादाश्री : उसके कारनो (कारणो) में, हम हैं तो न्याय खोजने निकले हैं वह उसका कारन (कारण) है न्याय खोजना बंध कर दें तो बुद्धि जाती रहेगी । न्याय किस लिए खोजते हो ? तब वह बहू क्या कहेगी ? "लेकिन तू मेरी सास को नहीं जानती, मैं आई तबसे वह दुःख देती है, इसमें हुआ सो न्याय मेरा कसूर क्या है ?" ___कोई बिना पहचाने दुःख देता होगा ? उसके बहीवाते में जमा होगा तो तुझे बार बार दिया करता है । तब कहेगा, "लेकिन मैंने तो उसका मँह भी नहीं देखा था ।" "अबे, तूना इस जन्ममें नहीं देखा पर अगले जन्म का बहोखाता क्या कहता है ?" इसलिए जो हुआ सो ही न्याय! घरमें लड़का दादागीरी करता है न? वह दादागीरी सो ही न्याय । यह तो बुद्धि दिखाती है, लड़का होकर बाप के सामने दादागीरी ? वह जो हुआ सो ही न्याय! अर्थात यह “अक्रम विज्ञान" क्या कहता है ? देखो यह न्याय! लोग मुझे पूछते है, "आपने बुद्धि किस तरह निकाल दी ?" न्याय खोजा नहीं इसलिए बुद्धि जाती रही । बुद्धि कहाँ तक खडी रहे ? न्याय खोजे और न्याय को आधार माँगे तो बुद्धि खडी रहे, तब बुद्धि कहेगी, "हमारे पक्षमें है भाईजी।" कहेंगे, "इतनी उमदा (उम्दा) नौकरी की और ये डिरेक्टरर्स (डारेक्टर्स) किस आधार पर उल्टा बोलते है ?"वह आधार देते हो ? न्याय खोजते हो? वे जो बोलते है वही करेक्ट (सही) है अब तक क्यों नहीं बोलते थे ? किस आधार पर नहीं बोलते थे ? अब कौन से न्याय के आधार वे बोलते है ? सोचने पर नहीं लगता कि वे जो बोल रहै है वह प्रमाणमान से बोल रहे है । अबे, पगारवृद्धि नहीं करता वहीं न्याय है । उसे अन्याय किस प्रकार कहलाये हमसे ? बुद्धि खोजे न्याय ! यह सब तो मोल लिया हुआ दुःख है और थोड़ा बहुत जो दुःख है, वह बुद्धि की वजह से है । बुद्धि होती है न सभी में ? वह डेवलप (विकसित) (23) बुद्धि करवाती है । नहीं हो वहाँ से दु:ख ढूंढ निकाले । मेरे तो बुद्धि डेवलप (विकसित) होने के बाद जाती रही । बद्धि ही ख़त्म हो गई । बोलिए, मज़ा आयेगा कि नीं आयेगा ? बिलकुल, एक सेन्ट (परसेंट) (पैसाभर) बुद्धि रही नहीं है । तब एक आदमी मुझसे पूछता है कि, "बुद्धि

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