Book Title: Hua So Nyaya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Foundation
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हुआ सो न्याय किस तरह जाती रही ? तू चली जा कहने से ?" मैंने कहा, "नहीं, अबे, ऐसा नहीं करते ।" उसने तो अब तक हमारा रोब (रौब) रखा । दुविधा में हो तब खरे वक़्त पर, "क्या करना, क्या नहीं ?" उसका सभी मार्गदर्शन किया, उसे निकाल बाहर करना होता होगा ? मैंने उसे समझाया, "जो न्याय ढूँढता है न, उसके वहाँ बुद्धि सदा के लिए निवास करती है ।" "जो हुआ सो न्याय" ऐसा कहने वाले की बुद्धि जाती रहती है । न्याय खोजने गये वह
बुद्धि ।
प्रश्रकर्ता : लेकिल दादा, जो आया उसे स्वीकार लेना जीवन में ।
दादाश्री : मार खाकर स्वीकार करना उसके बजाय खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना अच्छा ।
प्रश्रकर्ता : संसार है, बाल-बच्चे है, लड़के की बहू है, यह है, वह हा। इसलिए संबंध तो रखना होगा ।
दादाश्री : हाँ सब रखने का । प्रश्रकर्ता : तब उसमें मार पडती है तो क्या करना ?
दादाश्री: संबंध सभी रखकर और मार पडे, वह स्वीकार लेना है हमें। वर्ना मार पड़े तो हम कर भी क्या सकते है ? दुसरा कोई उपाय है?
प्रश्नकर्ता : कुछ नहीं, वकीलों के पास जाना ।
दादाश्री : हाँ दूसरा क्या होगा। वकील रक्षा करे कि उनकी फ़ीसें वसूल करें?
"हुआ सो न्याय, वहा," वहाँ बुद्धि “आउट''! न्याय ढूँढना हुआ इसलिए बुद्धि खड़ी हो जाये, बुद्धि समझे कि अब मेरे बगैर चलने वाला नहीं, और हाम कहें कि वह न्याय है, इस पर बुद्धि कहेगी, "अब इस घरमें अपना रोब (रौब) नहीं जमेगा" वह विदायमान ले ले अऔ चली जाये । कोई उसका समर्थक हो वहाँ घुस जाये । उसक
हुआ सो न्याय आसक्ति वाले तो बहुत लोग होते है ना । मनौती माने, मेरी बुद्धि बढ़े ऐसी । और सामने तरजू में उतनी कुढ़न बढ़ती ही जाये । बेलेन्स (समतुला (संतुलन)) तो धारण करे न हमेशा । बेलेन्स (समतुला (संतुलन)) उसके सामनेवाले पलड़ेमें चाहिए ही । हमारी बुद्धि खतम इसलिए कुढ़न खतम ।
विकल्पों का अंत वही मोक्षमार्ग! अर्थात हुआ उसे न्याय कहोगे न तो निर्विकल्प रहोगे और लोग निर्विकल्प होने के लिए न्याय ढूँढने निकले हैं । विकल्पोंका एण्ड (अंत) हो वह रास्ता मोक्ष का ! विकल्प खड़े नहीं हो ऐसा है न अपना मार्ग ?
महेनत किये बगैर हमारे अक्रम मार्ग में मनुष्य आगे बढ़ जाये । सो न्याय । बुद्धि जब विकल्प करवाये न, तब कह देना, जो हुखा सो न्याय । बुद्धि न्याय ढूँढेने निकले हैं । विकल्पों का एण्ड (अंत) हो वह रास्ता मोक्ष का ! विकल्प खड़े नहीं हों ऐसा है न अपना मार्ग?
महेनत किये बगैर हमारे अक्रम मार्ग में मनुष्य आगे बढ़ जाये । हमारी चाबियाँ ही ऐसी हैं कि बिना महेनत आगे बढ़ जाये ।
अब बुद्धि जब विकल्प करवाये न, तब कह देना, जो हुआ सो न्याय। बुद्धि न्याय ढूँढे कि मुझ से छोटा है, मयाँदा नहीं रखता । वह रखी वही न्याय
और नहीं रखी वह भी न्याय । जितना बुद्धि का निर्विवाद होगा उतना निर्विकल्प होगा फिर !
यह विज्ञान क्या कहता है ? न्याय तो सारा संसार खोज रहा है! उसके बजाय हम ही स्वीकार करले कि हुआ सो ही न्याय । फिर जज भी नहीं चाहिए अऔ वकील भी नहीं चाहिए । और वर्ना आखिर वही रहे न फिर, मार खाकर भी ?
किसी कोर्टमें नहीं मिले संतोष ! और शायद माग लो कि किसी एक भाई को न्याय चाहिए । तो हमने निम्न कोर्ट में से जजमेन्ट करवाया । वकील लड़े बाद में जजमेन्ट आया,

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