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हुआ सो न्याय भूल गया । उसके पास कई सौ के नोट, कई दस के नोट बिना गिनती के हो। वह भूल गया और हमे पाँच लौटाये तब हम क्या कहेंगे? मैने आपको सौ का नट दिया था । वह कहे, नहीं । उसे वैसा ही याद है, वह भी झूठ नहीं बोलता । तब क्या करें हम ?
प्रश्रकर्ता : लेकिन वह खटक खटक करता है, इतने पैसे गये. मन चीख-पुकार करे ।
दादाश्री : वह खडकता है, तो जिसे खटकता है उसे नींद नहीं आयेगी। हमें क्या ? इस शरीर में जिसे चुभता है उसे नींद नहीं आयेगी । सभी को चुभे ऐसा कुछ थोड़ा है । लोभी को चुभे मूए को । तब उस लोभी से कहें, चुभता है तो सो जाओ न ! अब तो सारी रात सोना ही पड़ेगा ।
प्रश्नकर्ता : उसकी नींद भी जाये और पैसे भी जाये ।
दादाश्री : हा, इसलिए वहाँ हुआ सो करेक्ट (सही) यह ज्ञान अनुभव हुआ तो हमारा कल्याण होय गया ।
हुआ सो न्याय समझे तो सारे संसार का पार लग जाये ऐसा है । इस दुनिया में एक सेकिन्ड भी अन्याय होता नहीं है । न्याय ही हो रहा है । अथाँत बुद्धि हमें फँसाती है कि यह न्याय कैसे. कहलाये ? इसलिए (14) हम मूल बात बताना चाहते है कि कुदरत का है यह, ओर आप बुक्षिसे अलग हो जायें? अर्थात बुक्षि इसमें फँसाती है । एक बार समझ लेने के प्रश्चात (प्रश्चात) बुक्षि का मानेंगे नहीं हम । हुआ सो न्याय । अदालती न्याय में भूलचूक होगी सब । उलटा-सीधा हो जाये, पर इस न्याय में फर्फ नहीं, सटासट काट देने का ।
कम-ज्यादा बँटवारा, वही न्याय ! एक भाई हो, उसका बाप मर जाये तब सभी भाईयों की जमीन है वह उस बड़े भाई के हाथमें आये । अब बड़ा भाई है वह उस छोटे को धमकाता रहे बार बार पर ज़मीन देवे नहीं ? ढाई सौ बीघा जमीन थी । पचास - पचास बाघा देनी थी । चार जनों को पचास - पचास बीघे देनेकी थी । तब कोई
हुआ सो न्याय पच्चीस ले गया हो, कोई पचास ले गया हो, कोई चालीस ले गया हो और किसी के हिस्से मां पाँच ही आई हो ।
अब उस समय क्या समझना ? संसारी न्याय क्या करता है कि बड़ा भाई नंगा है, झूठा है । कुदरत का न्याय क्या कहता है, बड़ा भाई करेक्ट (सही) है । पचास वाले को पचास दी, बीस वाले को बीस दी, चालीस वाले को चालीस और यह पाँच वाले तो पाँच ही दी । जो बची वह, दूसरे हिसाब में जमा हो गई पिछले जन्म के । मेरी बात आपकी समझ में आती है ?
अथाँत यदि झगड़ा नहीं करना हो तो कुदरत के चलन से चलना, वर्ना यह संसार तो झगड़ा है ही । यहाँ न्याय नहीं हो सकता । न्याय तो निरीक्षण के लिए है कि मुझमें परिवर्तन, कछ फर्फ हुआ है । न्याय तो हमारा एक थर्मामीटर (तापमान यंत्र) है । बाक़ी व्यवहार में न्याय नहीं हो सकता न ! न्याय आया अर्थात मनुण्य पूर्ण हो गया । वहाँ तक इस और पड़ा हो, या तो अबोव नोर्मालिटी (सामान्य से उपर) अथवा बिलो नोर्मालिटी (सामान्य से निम्न) हो ।
अथाँत वह बड़ाभाई उस छोटे को नहीं देता, पाँच ही बीधा देता है न। वहाँ हमारे लोग न्याय करने जाये और उस बड़े भाई को बुरा ठहराये । (15) अब यङसब गुनाह है । तू भ्राँतिवाला, तब मुए आँतिको फिर सत्य माना । लेकिन छुटकारा ही नहीं, और सत्य माना है । इसलिए फिर इस व्यवहार को ही सत्य माना हो, तब मार खायेगा ही न । बाकी कुदरत के न्याय में तो कोई फूलचूक ही नहीं है।
अब वर्हा हम कहते नहीं कि तुम्है ऐसा नहीं करना चाहिए, इसको इतना करना चाहिए । वर्ना हम वीतराग नहीं कहलायें । यह तो हम देखा करें कि पिछला हिसाब क्या है !
हमसे कहे कि आप न्याय करें ।न्याय करने को, तब हम कहे कि भाई हमारा न्याय अलग तरह का होता है और इस संसार का न्याय अलग तरह का। हमारा कुदरत का न्याय है । वलर्ड का रेग्युलेटर (संसार का नियंत्रण)