Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 1
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand
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स्थिति
ग्रंथांक: प्रत नाम
(पेटा नंबर).पेटा नाम कृति नाम
(भांता) भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना (ताडपत्रीय) पूर्णता प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र
क्लिन/ओरिजिनल
डीवीडी (डीवीडी- भाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य संपूर्ण ताडपत्र
६९/७८(८)
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कर्ता
कति प्रकार
आचारागसूत्र नियुक्ति
(जुनो नं. १८८०-८१/११)सूचीपत्र-नं.१-८.(१३४२.. ३६४४८).
आचारागसूत्र-नियुक्ति
भद्रबाहुस्वामी
प्रा.
वन्दित्तु सच्चसिद्धे
पद्य
गा.३६५ग्रं. ४७० ताडपत्र
कल्पसूत्र
: श्रेष्ठ
संपूर्ण
:१३१
भद्रबाहस्वामी
प्रा
गं. १२८०...
देवचन्द्रसूरि
ग्रं.३९५
[वि. ११४६
(पे.). (पे.२) कालिकाचार्यकथामुलशुद्धिप्रकरणटीकान्तर्गता :कल्पसूत्र
६९/७८(५३) (जुनो नं. १८८०-८१/१४)सूचीपत्र-नं.१-४९९.. (१५४२.५,
:३-५४४४) नमो अरिहन्तार्ण..
संयुक्त प+ग...... .. १-९८).पे.वि... सूचीपत्रांक-१-४९९. अस्थि इहेव जम्बू
(पे.पृ. ९९-१३१) पं.वि. : सूचीपत्रांक-४-११२. [कृ.वि. :
ग्रंथान ३६० थी ४०० सुधी मळे छे.]. ९५-४(१ थी २.५३.६६)=९१ : ६९/७८(२७) (जुनो नं. १८९१-९५/१२४८)सूचीपत्र-नं.१-५०१.,
:(११.५४२., ४-६४३६) .. नमो अरिहन्ताणं...
संयुक्त प+ग (प.पू. ३-९५/अणुसरि आगमवयणं सिरि
(पे.पृ.) पे.वि. : सूचीपत्रांक-४-१११.
श्रेष्ठ
ताडपत्र
भद्रबाहस्वामी
ग्र.१२८०
(प.) (पे.२) कालिकाचार्यकथा
गा. १३२ ग्रं.
१६९
जीतकल्पसूत्र चूर्णि
ताडपत्र
वि. १३मी
६९/७८(२२)
(जुनो नं. १८८०-८१/२४)सूचीपत्र-नं.१-५९६.. (१२.५४२.. ४-६४५०
: सिद्धसेनसरि
:
ग्रं.११००
सिद्धत्थसिद्धसासण
जीतकल्पसूत्र-चूर्णी जीतकल्पूसत्रचूर्णि
गद्य ६९/७८(१९)
अष्ट
संपूर्ण
ताडपत्र
वि. १श्मी
८५
(जुनो नं. १८८०-८१/२३)सूचीपत्र-नं.१-५९५., (१२.५४२.. ३-५४३८)
गं. ११००
सिद्धत्थसिद्धसासण
: सिद्धसेनसूरि श्रेष्ठ
संपूर्ण
ताडपत्र
६९/७८(८)
जीतकल्पसूत्र-चूणी जीतकल्पसूत्र व सिद्धत्थेत्यादिविवरण (पे.१) जीतकल्पसूत्र
प्रा.
.
कयपवयणप्पणामो वोच्छं
जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण
गा.१०५ १३०
(जुनो नं. १८८०-८१/७५)सूचीपत्र-नं.१-५९१, 4-५९७.. (१४४२.:.५४४०-४५). (पे.पृ. १-१२) पे.वि. : गाथा-१०३. सूचीपत्रांक-१-५९१. [कृ.वि. हस्तप्रतसूचीओमां जीतकल्प, यतिजीतकल्प अने श्रावकजीतकल्पमा घणी वखत परस्पर अस्पष्टताओं रहेल छे.] (पे.पू. १२-१३). (पे.पृ. १३-१८) पे.वि. : सुचीपत्रांक-१-५९७. [कृ.वि. कर्ता? /चूर्णिनो हिस्सो छे?]
(पे.२/ श्रावकप्रायश्चित.. (पे.३) जीतकल्पसूत्रचूर्णिगतसिद्धत्थेत्यादि
शास्त्रारम्भे विघ्नो

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