Book Title: Harshapuriyagaccha Aparnam Maldhari Gaccha ka Sankshipta Itihas Author(s): Shivprasad Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 2
________________ श्रीतिलकसूरि, राजशेखरसूरि, वाचनाचार्य सुधाकलश आदि कई विद्वान् आचार्य एवं मुनि हुए हैं। इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं । साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में रची गयी कृतियों की प्रशस्तियां अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । इसके अतिरिक्त इस गच्छ की एक पट्टावली भी मिलती है, जो सद्गुरूपद्धति के नाम से जानी जाती है । इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा वि.सं. ११९० से वि.सं. १६९९ तक प्रतिष्ठापित १०० से अधिक सलेख जिनप्रतिमायें मिलती हैं। साम्प्रत लेख में उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अनुयोगद्वारवृत्ति:संस्कृत भाषा में ५९०० श्लोकों में निबद्ध यह कृति मलधारगच्छीय हेमचन्द्रसूरि की रचना है । इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरू-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : जयसिंहसूरि अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि (अनुयोगद्वारवृत्ति के रचनाकार) हेमचन्द्रसूरि विरचित विशेषावश्यक भाष्यबृहवृत्ति के अन्त में भी यही प्रशस्ति मिलती है। उनके द्वारा रचित आवश्यक प्रदेशव्याख्यावृत्ति, आवश्यकटिप्पन, शतक विवरण, उपदेशमालावृत्ति आदि रचनायें मिलती हैं, जिनके बारे में आगे यथास्थान विवरण दिया गया है। धर्मोपदेशमालावृत्ति:मलधारगच्छीय हेमचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंह सूरि ने वि.सं. ११९१, ई. सन् ११३५ में उक्त कृति की रचना की । इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार ने अपनी गुरू-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : १६० श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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