Book Title: Harshapuriyagaccha Aparnam Maldhari Gaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 15
________________ देवानन्दसूरि नेमिचन्द्रसूरि यशोभद्रसूरि देवप्रभसूरि नरचन्द्रसूरि माणिक्यचन्द्रसूरि नरेन्द्रप्रभसूरि रत्नप्रभसूरि प्रभानन्दसूरि पद्मदेवसूरि ..... ग्रन्थप्रशस्तियों से जहां श्रीचन्द्रसूरि के केवल दो शिष्यों- मुनिचन्द्रसूरि और देवभद्रसूरि के बारे में ही जानकारी प्राप्त हो पाती है, वहीं इस गुर्वावली से ज्ञात होता है कि उनके अतिरिक्त श्रीचन्द्रसूरि के हरिभद्रसूरि सिद्धसूरि, मानदेवसूरि आदि शिष्य भी थे । यही बात मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार इस गुर्वावली में उल्लिखित नरचन्द्रसूरि के सभी शिष्यों के नाम साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञात हो जाते हैं। वस्तुत: इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से यह गुर्वावली अत्यन्त महत्वपूर्ण है। __ मलधारगच्छ से सम्बद्ध १५वीं-१६वीं शती की जिन प्रतिमाओं की संख्या पूर्व की शताब्दियों की अपेक्षा अधिक है। इन पर उत्कीर्ण लेखों से इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, तथापि उनमें से कुछ के पूर्वापर सम्बन्ध ही निश्चित हो पाते हैं । इनका विवरण इस प्रकार है: १. मतिसागरसूरि (वि.सं. १४५८-१४७९) ३ प्रतिमालेख २. मतिसागरसूरि के पट्टधर विद्यासागरसूरि (वि.सं. १४७६-१४८८) ७ प्रतिमालेख ३. विद्यासागरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि (वि.सं. १४९७-१५२९) ४३ प्रतिमालेख ४. गुणसुन्दरसूरि के पट्टधर गुणनिधानसूरि (वि.सं. १५२९-१५३६) ८ प्रतिमालेख ५. गुणनिधानसूरि के पट्टधर गुणसागरसूरि (वि.सं. १५४३-१५४६) २ प्रतिमालेख हर्षपुरीयगच्छ अपरनाम मलधारीगच्छ का संक्षिप्त इतिहास १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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