Book Title: Harshapuriyagaccha Aparnam Maldhari Gaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 18
________________ पट्टधर थे । श्रीचन्द्रसूरि विरचित मुनिसुव्रतचरित (रचनाकाल वि.सं. १९९३/ई. सन् ११३७) एवं राजशेखरसूरि कृत प्राकृतदयाश्रयवृत्ति' की प्रशस्तियों से इनके सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। विशेषावश्यक भाष्यबृहद् वृत्ति (रचनाकाल वि.सं. १९७० / ई. सन् १११४) की प्रशस्ति में इन्होंने स्वरचित ९ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, २२ जो इस प्रकार हैं : १. आवश्यक टिप्पण ३. अनुयोगद्वारवृत्ति ५. उपदेशमालावृत्ति ७. भवभावनासूत्र ९. नन्दिटिप्पण .२१ आवश्यक टिप्पण : ४६०० श्लोकों की यह कृति आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित आवश्यकवृत्ति पर लिखी गयी है। इसे आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या के नाम से भी जाना जाता है । इस पर हेमचन्द्रसूरि ही एक शिष्य एवं पट्टधर श्रीचन्द्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जो प्रदेशव्याख्याटिप्पण के नाम से प्रसिद्ध है । २. शतक विवरण ४. उपदेशमालासूत्र ६. जीवसमासविवरण ८. भवभावना विवरण शिवशर्मसूरि विरचित प्राचीन पंचम कर्मग्रन्थ शतक पर मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने संस्कृत भाषा में ३७४० श्लोक प्रमाण वृत्ति अथवा विवरण की रचना की। जैसलमेर के ग्रन्थ भंडार में १३वीं - १४वीं शती की इसकी कई प्रतियां संरक्षित हैं । १७६ शतक विवरण : : अनुयोगद्वारवृत्ति : यह अनुयोगद्वार के मूलपाठ पर ५९०० श्लोकों में रची गयी है। इसमें सूत्रों के पदों का सरल व संक्षिप्त अर्थ दिया गया है । कलकत्ता, बम्बई एवं पाटन से इसके चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। २३ Jain Education International उपदेशमालासूत्र : सुभाष और के रूप में रचित जैन मनीषियों की अनेक कृतियां मिलती हैं । यह कृति भी उसी कोटि में मानी गयी है। इसमें सदाचार और लोकव्यवहार का उपदेश देने के लिए स्वतंत्र रूप से अनेक सुभाषित पदों का निर्माण किया गया है, जिसमें जैन धर्मसम्मत आचारों और श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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