Book Title: Harshapuriyagaccha Aparnam Maldhari Gaccha ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 20
________________ विजयसिंह सूरि :__ आप हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे। श्रीचन्द्रसूरि कृत मुनिसुव्रतस्वामीचरित (रचनाकाल वि.सं. ११९३/ई. सन् ११३७), लक्ष्मणगणिविरचित सुपासनाहचरित (रचनाकाल वि.सं. ११९९/ई. सन् ११४३), नरचन्द्रसूरि द्वारा रचित कथारत्नसागर एवं देवप्रभसूरिकृत पाण्डवचरितमहाकाव्य की प्रशस्तियों में इनका सादर उल्लेख है। कृष्णर्षिगच्छीय जयसिंह सूरिविरचित धर्मोपदेशमाला (रचनाकाल वि.सं. ९१५/ई. सन् ८५९) पर इन्होंने वि.सं. ११९१/ई. सन् ११३५ में १४४७१ श्लोक परिमाण संस्कृत भाषा में विवरण की रचना की। इसके अन्तर्गत कथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्रीचन्द्रसूरि :आप विजयसिंहसूरि के लघु गुरूभ्राता और मलधारी हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर थे। इन्होंने वि.सं. ११९३/ई. सन् ११३७ में प्राकृत भाषा में मुनिसुव्रतस्वामिचरित की रचना की। यह प्राकृत भाषा में उक्त तीर्थंकर पर लिखी गयी एक मात्र कृति है। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने अपनी गुरू-परम्परा का अत्यन्त विस्तार के साथ परिचय दिया है। इनकी दूसरी महत्वपूर्ण कृति है संग्रहणीरत्नसूत्र, जिस पर इनके शिष्य देवभद्रसूरि ने साढ़े तीन हजार श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना की । वि.सं. १२२२/ई. सन् ११६६ में इन्होंने अपने गुरू की कृति आवश्यकप्रदेशव्याख्या पर टिप्पण की रचना की ।२६ लघुक्षेत्रसमास भी इन्हीं की कृति है।२७ लक्ष्मणगणि:आप भी मलधारी आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य थे। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है इन्होंने वि.सं. ११९९/ई. सन् ११४३ में प्राकृत भाषा में सुपासनाहचरिय की रचना की। इसके अतिरिक्त इन्होंने अपने गुरू को विशेषावश्यकभाष्यबृहवृत्ति के लेखन में सहायता दी।२८ यह बात उक्त ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होती है। देवभद्रसूरि :जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है ये श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य थे। इन्होंने अपने गुरू की कृति संग्रहणीरत्नसूत्र पर वृत्ति की रचना की। न्यायावतारटिप्पनक और बृहत्क्षेत्रसमासटिप्पणिका (रचनाकाल वि.सं. १२३३/ई. सन् ११७७) भी इन्हीं की कृति है। १७८ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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