Book Title: Harit Kyadi Nighant Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विज्ञप्ति. प्रकट होकी, यह हरीतक्यादिनिघंट नामवाला ग्रंथ अखिल निघंटोंमें उत्तम है. सब चिकित्सा करनेवाले वैद्यलोग अनेक प्रकारके औषध आदि उपचार करते हैं, परंतु तिनोंकों अनेकविध औषधि, वनस्पति, धातु, रस इत्यादिकोंका भाषामें यथार्थ ज्ञान होनेकू अत्यंत प्रयास पडताहै. इस आपत्ति दूर करनेवाला यह ग्रंथ है. इसमें सब विषयोंका अच्छे प्रकारसे विवरण किया है. इस लिये प्रायकरिके बहुतसे बडे बडे विद्वज्जनोंकों इस ग्रंथके संग्रह करनेकी अत्यंत अभिलाषा है. उसका दूसरा कारण यह है की, इस ग्रंथमें बहुत औषधोंकी जाति, वर्ण, देश, उत्पत्ति इत्यादि बहुत प्रयत्नसें शोधकरके विशेषतः लिखी हैं. इससे हरवख्त कोईसेभी प्रसंगमें जब कोईसे औषधीके ज्ञानकी आवश्यकता पडेगी, तब जैसा इस ग्रंथसें औषधि, वनस्पति आदियोंका यथार्थ स्वरूप मालूम पडेगा वैसा अन्य ग्रंथोंसे नहीं पडता है, यह बात सत्य है. परंतु ऐसा सर्वोपयुक्त ग्रंथ अबतक छापके प्रसिद्ध हुआनहीं, सो प्रसिद्ध करनेकी अत्यंत जरूरी है. ऐसी अनेक वैद्यवरोंकी संमति लेकर इस सर्वसुखदाई ग्रंथकी श्रीयुत पंडित वैजनाथ बुकसेलर मथुरानिवासीने पंडित रंगीलाल तथा श्रीजगन्नाथ शास्त्रीजीसें व्रजभाषामें टीका करायी थी. वह ऊपर लिखित टीकासहित ग्रंथ पंडितोंकों साद्यंत दिखाय उसपर उनोंकी अच्छीप्रकार संमति लेकर मैने टीकाकारसें हक्कसहित यह ग्रंथ लेकर विद्वानोंसे उसका शोधन करवायके “निर्णयसागर" छापखानेमें सुंदर बडे अक्षरोंसें जिल्द कागजपर छापके प्रसिद्ध किया है. अब सबोंकों विज्ञापना यह है की, इस नवीन टीकामें जो यदि अशुद्ध आदि दोष क्वचित् स्थलविशेघमें रहगया होवै, तो उसपरकी दोषदृष्टिकों त्यागकर गुणदृष्टिवाले, ग्रंथ करनेके परिश्रम और शोधनके प्रयास जाननेवाले, सारग्राही, विद्वान् कृपादृष्टिसें उसमेसें दोष निकाल करके पूर्व जैसा श्रीकृष्ण भगवानजीनें दरिद्री सुदामदेव ब्राह्मणके छालसहित पृथुक केवल उसकी भावना देखकर तुषोंकों निकाल शुद्ध पृथुकोंका स्वीकार किया वैसा अपने उदार आश्रयके दानसे मेरा परिश्रम सफल करके ग्रंथका आदर करना यही प्रार्थना है. हरिप्रसाद भगीरथ. For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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