Book Title: Gyan Pradipika tatha Samudrik Shastram
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 16
________________ विशेष-वक्तव्य। १-ज्योतिष-शास्त्र। जिस शास्त्र के द्वारा सूर्य, चन्द्र, मंगल आदि ग्रहों को गति, स्थिति आदि एवं गणित जातक, होरा आदि का सम्यक् बोध हो उसे ज्योतिषशास्त्र कहते हैं। विद्वानों का मत है कि भिन्न भिन्न शास्त्रों के समान यह शास्त्र भी मनुष्यजाति की प्रथमावस्था में अङ्करित हो ज्ञानोन्नति के साथ साथ क्रमशः संशोधित तथा परिवर्धित होकर वर्तमान अवस्था को प्राप्त हुआ है। सूर्य चन्द्रादि अन्यान्य ग्रहों का स्वभाव ऐसा अद्भुत एवं अलौकिक है कि उनको ओर प्राणिमात्र का मन आकर्षित हो जाता है। प्राचीन समय से हो इसको ओर सभी जातियों का ध्यान विशेषतः आकृष्ट हुआ था और अपनी २ बुद्धि के अनुसार सभी लोगों को इस लोपोफ्यागो शास्त्र का यत्किञ्चित् ज्ञान भी अवश्य था। इसो लिये चीन, ग्रीक, मिश्र आदि सभी जातियां आने का ज्योतिषशास्त्र का प्रवर्तक मानती है। भारतीय प्राचीन विद्वानों ने ज्यातिष शास्त्र का सामान्यतः दो विभागों में विभक्त किया है। एक फलित और दूसरा सिद्धांत अथवा गणित । फलित के द्वारा प्रह नक्षत्रादि की गति या सञ्चारादि देख कर प्राणियों को भावो दशा ( अवस्था) और कल्याण तथा अकल्याण का निर्णय किया जाता है। दूसरे सिद्धान्त अथवा गणित के द्वारा स्पष्ट गणना कर के ग्रह नक्षत्रादि को गति, एवं संस्थानादि के नियम, उनका स्वभाव और तजन्य फलाफलों का स्पष्टीकरण किया जाता है। आंग्लेय विद्वान् फलित ज्यातिष को Astrology और गणित ज्योतिष का Astronomy कहते हैं। पर यहां एक बात मैं कहे देता हूँ, गणितज्ञ फलितशों को सदा उपेक्षा दृष्टि से देखते आये हैं। इस धारणा की पुष्टि में भारतीय गणकशिरोमणि डाकर गणेशी जी का कथन है कि जन्मकालीन प्रहनक्ष. नादि की स्थिति देख कर अमुक समय में हमें सुख और अमुक समय में दुःख होगा इसको जानना न कोई कष्टसाध्य बात है और न उससे कोई विशेष लाभ ही है। खैर, यह एक विवादासह विषय है, अतः यहाँ मैं इस विषय में विशेष उलझना नहीं चाहता हूँ। . प्रा सामुद्रिक शाब का लजिये। सामुद्रिक भी फलित ज्योतिष का एक खास विभाग है। इस शास्त्र के द्वारा हस्त, पाद, और ललाट को रेखा एवं भिन्न २ शरीरस्थ चिह्न देख कर मनुष्य का भूत, भविष्य और वर्तमान काल सम्बन्धी शुभाशुभ फल जाना Aho! Shrutgyanam


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