Book Title: Granthtrai Author(s): Vijayanandsuri, Shilchandrasuri Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ समर्पणम् "त्वदीयं तुभ्यमर्पये" धीरो विशालहृदयः समदर्शी भिन्नमतसहिष्णुश्च । वात्सल्यामृतवर्षी शासनहितचिन्तने निरतः ॥ भवभीरुगीतार्थः सर्वजनोपकृतिप्रकृतिकः सुकृती । दम्भाहंकारादिक-दूषणरहितः सरलचित्तः ॥ निजपरसमसमयज्ञः समयज्ञो ग्रन्थषोडशीकर्ता । गच्छाधिप ओजस्वी सूरियः परमगुरुसेवी ॥ सद्गुणपूर्णः श्रीमान् परमदयालुः सुतीक्ष्णसद्धिषणः । जिनशासने धुरीणोऽसौ नन्दनसूरिजिज्जयतात् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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