Book Title: Gopachal ka Ek Vismrut Mahakavi Raidhu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 2
________________ आसपास) के समय को देखने से यह विदित होता है थे। भारतीय वाङ्गमय के इतिहास में इतने विशाल कि कवि का जन्मकाल वि० सं० 1440 के आसपास साहित्य का प्रणेता एवं प्रायः सभी प्रमुख प्राच्यहोना चाहिए। इसी प्रकार कवि ने अपनी रचनाओं में भाषाओं का जानकार अन्य दूसरा कवि ज्ञात नहीं गोपाचल नरेश कीर्तिसिंह तोमर एवं भट्टारक शुभचन्द्र होता । रइधू विरचित साहित्य को वर्गीकृत सूची निम्न (माथुरगच्छ पुष्करगणीय) के उल्लेख विस्तार के साथ प्रकार है :किए हैं, जिनका कि समय वि० सं० 1536 के आसपास है । इन उल्लेखों तथा अन्य तथ्यों से यह स्पष्ट विदित (क) चरित साहित्य होता है कि कवि उक्त समय तक साहित्य साधना करता (1) हरिवंशचरिउ (14 सन्धियां एवं 302 रहा और इस प्रकार उसका कुल जीवनकाल अनुमानतः कडवक तथा 14 संस्कृत श्लोक); (2) बलहहचरिउ वि० सं० 1440 से 1536 के मध्य तक प्रतीत होता (11 सं०, 240 कडवक एवं 11 सं० श्लोक) (3) मेहेसरचरिउ (13 सं०, 304 कडवक एवं 12 सं. श्लोक), (4) जसहरचरिउ (4 सं०, 104 कडवक, वंश-परम्परा 4 सं० श्लोक); (5) सम्मइचरिउ (10 सं०, 246 रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों में मधुकरी वृत्ति से. र कडवक एवं 10 सं० श्लोक); (6) तिसट्टिमहाउनकी पारिवारिक-परम्परा का परिचय मिल जाता है। र पुराणपुरिसआयारगुणालंकारु (50 सन्धियाँ, 1357 कडवक); (7) सिरिसिरिवालचरिउ (10 सं0 202 उसके अनुसार कवि के पितामह का नाम संघाधिप देवराज तथा पिता का नाम हरिसिंह था और माता ___ कडवक एवं 10 सं० श्लोक); (8) संतिणाहचरिउ (सचित्र, अपूर्ण, मात्र आठ सन्धियां ही प्राप्त हैं); (9) का नाम था विजयश्री । रइधू तीन भाई थे-बाहोल, माहणसिंह एवं रइधू । रइधू की पत्नी का नाम सावित्री पासणाहचरिउ (7 सं. 137 कडवक 7 सं. श्लोक) (10) था तथा पुत्र का नाम उदयराज ।' कवि ने उदयराज जिमंधरचरिउ (13 सं०, 301 कडवक तथा 13 सं० के जन्म के दिन ही अपनी 'हरिवंशचरित' नामक रचना श्लोक); (11) सुक्कोसलचरिउ (4 सं०, 74 कड़वक एवं 4 सं० श्लोक); (12) धण्णकुमारचरिउ (4 सं०, समाप्त की थी। 74 कडवक एवं 4 सं० श्लोक); साहित्य साधना (ख) आचार एवं सिद्धान्त साहित्य ____ महाकवि रइधू की साहित्य साधना गम्भीर विशाल (13) सावयचरिउ (6 सं०, 125 कडवक); एवं अद्भुत रही है । उन्होंने अपने जीवनकाल में तेईस (14) पुण्णासवकहा (13 सं०, 250 कडवक), (15) से भी अधिक ग्रन्थों की रचना की, जिनकी भाषा सम्मत्तगुणणिहाणकव्व (4 सं०, 104 कडवक), प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी है। कई ग्रन्थों में अपने (16) अप्पसंवोहकव्व (3 सं058, कडवक), (17) आश्रयदाताओं के प्रति आशीर्वचन सूचक संस्कृत सिद्धन्तत्थसार (प्राकृत भाषा निवद्ध-13 अंक एवं श्लोकों की भी उन्होंने रचना की है। इन्हें देखकर 850 गाथाएँ); (19) वित्तसार (प्राकृत भाषा निबद्ध, प्रतीत होता है कि वे संस्कृत के भी अधिकारी विद्वान् 6 अंक, एवं 850 गाथाएं); 3. विशेष के लिए देखिए रइधू सा० का आ० परि० पृ० 116-120 4. वही, पृ० 35-40 ३०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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