Book Title: Gopachal ka Ek Vismrut Mahakavi Raidhu Author(s): Rajaram Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 8
________________ के अमात्य थे तथा ऐश्वर्य में किसी भी राजा से कम न काव्यरूपी एक भी सून्दर मणि नहीं है। उसके बिना थे । वे कवि से कहते हैं "हे कविवर, शयनासन, हाथी, मेरा सारा ऐश्वर्य फीका-फीका लगता है। हे काव्यरूपी धोडे, ध्वजा, छत्र, चमर, सुन्दर-सुन्दर रानियाँ, रथ, रत्नों के रत्नाकर, तुम तो मेरे स्नेही बालमित्र हो, सेना, सोना-चाँदी, धन-धान्य, भवन, सम्पत्ति, कोष, तुम्हीं हमारे सच्चे पुण्य-सहायक हो । मेरे मन की इच्छा नगर, देश, ग्राम, बन्धु-बान्धव, सुन्दर सन्तान, पुत्र, को पूर्ण करनेवाले हो । इस नगर में बहुत से विद्वज्जन भाई, आदि सभी मुझे उपलब्ध हैं। सौभाग्य से किसी रहते हैं, किन्तु मुझे आप जैसा कोई भी अन्य सुकवि भी प्रकार की भौतिक-सामग्री की मुझे कमी नहीं, किन्तु नहीं दिखता । अत: हे कविश्रेष्ठ, मैं अपने हृदय की इतना सब होने पर भी एक वस्तु का अभाव मुझे गाँठ खोलकर आपसे सच-सच कह रहा है कि आप मेरे निरन्तर खटकता रहता है, और वह यह कि मेरे पास निमित्त एक काव्य की रचना कर मुझ पर अपनी महती मोगराया डायनास्वाद मलनसावकलाटावडामाशयमानता भावानीगादासर मिला किमडानियावासादायक जनावरामवासना कवनपद्धामायावती तोपिदासान। RE বঙ্গালোচনা সমাজের এই राविकमा साश्रया सरकारालकाला जबामालामालवाSIS रईधूकृत पासणाह चरिउ प्रतिलिपि काल-वि० स० १४९३ सन्दर्भ-राजा अरविन्द अपने मन्त्री वायभूति से उसके भाई कमठ के चरित्र के विषय में पछ रहा है तथा कमठ को तत्काल ही देश निर्वासन की सलाह कर रहा है। ३१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13