Book Title: Gopachal ka Ek Vismrut Mahakavi Raidhu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
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________________ की दाल (हरिवंश० 4/7/8), पौड़ा गन्ना, (पास० दीप को प्रज्ज्वलित कर माँ भारती के श्रीचरणों को 6/1/6) लइगउ=लेगया (अप्प० 3-8-10) मामा आलोकित किया है / उसने विविध आक्रमणों से जर्जर मामा (हरिबंस० 4/8/6), कप्पड़= कपड़ा (अप्प० मालवभूमि के गिरते गौरव को अपनी समर्थ-लेखनी से 1/12/5), पैज =प्रतिज्ञा, (पृण्ण० 3/4/7), कुकुर उन्नतकर उसके पद को पुनः प्रतिष्ठित किया है तथा पुण्णा० (12/25/11) खाजा (पुण्णा० 1/10/5) अन्धकार में विलीन होते हुए उसके कई ऐतिहासिक अंथउ = सूर्यास्त पूर्व का भोजन, (पुण्णा० 12/3/4) तथ्यों को अपनी प्रशस्तियों के माध्यम से प्रकाशित चुल्लू (पुण्णा० 1/14/7), साँकल (पुण्णा० 1/3/4), किया है। निःस्सन्देह ही रइधू-साहित्य मालव प्रदेश का मोल (पुण्णा 5/1/10), देहली (पुण्णा० 8/2/8), गला ही नहीं समग्र भारतीय-वाङ्गमय का भी एक स्वर्णिम (पुष्णा० 13/4/12), तलवर=कोतवाल, (पुग्णा० अध्याय है। उसने शिक्षा जगत् का महान् उपकार किया 9/7/10) आदि ऐसे शब्द हैं, जो आज भी बुन्देली, है। अतः गोपाचल के इस वरेण्य कवि के अप्रकाशित बघेली, ब्रज, भोजपूरी, अवधी एवं पंजाबी में प्रयुक्त साहित्य को प्रकाशदान देने से ही म०प्र० उसके ऋणों होते हैं। से उऋण हो सकेगा और इसी प्रकार रइधू के प्रति रचनात्मक समर्थ श्रद्धांजलियाँ भी समर्पित की जा रइधू साहित्य का महत्व सकेंगी। इस प्रकार महाकवि रइधू ने विविध भाषाओं एवं साहित्यिक-शैलियों में एक विशाल साहित्य रूपी भास्कर 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org