Book Title: Gopachal ka Ek Vismrut Mahakavi Raidhu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
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आदेश दिया है । किन्तु जो कन्याएं कुलीन होती हैं, वे कभी भी ऐसा निर्लज्जता का कार्य नहीं कर सकतीं। हे पिताजी, इस विषय में मैं वाद-विवाद नहीं करना चाहती । इसलिए, मेरी प्रार्थना ध्यानपूर्वक सुनें । आपका यह कार्य लोक - विरुद्ध होगा कि आपकी कन्या स्वयंवर करके अपने पति का निर्वाचन करे । अतः मुझसे कहे बिना ही आपकी इच्छा जहाँ हो, वहीं पर मेरा विवाह कर दें......
भरत वाक्य
-साहित्य की यह विशेषता है कि उसके प्रायः सभी ग्रन्थों में विस्तृत भरत - वाक्य भी उपलब्ध होते हैं । उनके मूल में कवि के अन्तस् का उज्ज्वल रूप ही प्रतिभाषित होता है । कवि हृदय लोकमंगल की कामना से ओतप्रोत है । उसकी अभिलाषा है कि राजा कल्याणमित्र बने, प्रजा उसे अपना पिता समझे, राजा भी उसे अपनी सन्तति के समान स्नेह करे । समस्त आधियाँ एवं व्याधियाँ नष्ट हों । ऋतुएँ समयानुसार सुफल दें। सर्वत्र सुख-सन्तोष एवं शान्ति का साम्राज्य हो । कवि कहता है :
णिखद्दउ णिवसउ सयलुदेसु । पयपालउ दउ पुणु णरे ॥ जिणंसासणु गंदउ दोसमुक्कु । मुणिगण णंदउ तहिँ विसय चुक्कु ॥ द सावययण गलियपाव । जेणिसुनहिं जीवाजीव भाव || गंदउ महि णिरसिय असुहुकम्मु । जो जीवदयावरु परमधम् ॥
घत्ता
मच्छरमयहीणउँ सत्यपवीणउँ । पंडिययणु णंदउ सुचिरु ॥
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परमुण गहणायरु वयणियभायरु । जिणपयपयरुह णबिय सिरु ॥
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पास 7/11
अर्थात् “सम्पूर्ण देश उपद्रवों से रहित रहे, नरेश प्रजा का पालन करता हुआ आनन्दित रहे । जिन शासन फले-फूले । निर्दोष मुनिगण विषय-वासना से दूर रहकर आनन्दित रहें । जो श्रावकगण जीव-अजीव आदि पदार्थों का श्रवण करते हैं, बे पापरहित होकर आनन्द से रहें ।"
दूसरों के गुण ग्रहण करनेवाले, व्रत एवं नियमों का आचरण करनेवाले, मात्सर्य मद से रहित एवं शास्त्र में प्रवीण पण्डितगण चिरकाल तक आनन्द करें एवं सभी जन जिनेन्द्र के चरण-कमलों में नत मस्तक रहैं ।"
s - साहित्य में प्रयुक्त आधुनिक भारतीय भाषाओं के
शब्द
महाकवि रघु यद्यपि मूलतः अपभ्रंश कवि हैं किन्तु उनके साहित्य में ऐसी शब्दावलियां भी प्रयुक्त हैं जो आधुनिक भारतीय भाषाओं की शब्दावलियों से समकक्षता रखती हैं। उदाहरणस्वरूप यहाँ कुछ शब्दों को प्रस्तुत किया जाता है :
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टोपी ( जसहर 1 /5 / 7), ढोर (अप्प० 1 /4/2), चोजु (आश्चर्य, सुक्को० 1 /6/3), साला - साली (अप्प० 3/4 / 2), रसोइ ( सुक्को ० 4 / 5) गड्डी = गाड़ी, ( घण्ण० 2 / 7 ), गाली ( अप्प ० 1 / 8 ), जंगल ( अप्प ० 2 / 3 / 1 ), पोटली ( घण्ण० 2/6/4), वुक्कड = बकरा - धण्ण० 2/7/5), थट्ट = भीड़ सम्मइ० 1/17/4- खट्ट = खाट - धण्ण० 2 / 14 / 8 - सुत्त - सूतना = सोना, 3/15/3), पटवारी ( धण्ण० 4/20/5), वक्कल = बकला= • छिलका - सुक्को ० 2/5/12), ढिल्ल = ढीला - अप्प० 1 / 12 / 6), पुराना (अप्प० 1 / 19 / 3), झूठे = झगड़े ( अप्प० 1 / 20 / 5 ), अंगोछा = धोती, ( सम्मत्त० 5 / 10 / 13 ) मुग्गदालि = मूंग
धण्ण ०
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