Book Title: Ek Bhagyavan Vyapari arthat Hargovinddas Ramji Shah
Author(s): Shankarrav Karandikar
Publisher: Bharatiya Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ www.mm. एक भाग्यवान् व्यापारी ....... कर उठाया। उस समय वे बोले-"तुझे मेरे प्रति द्वेष है और तूं अदालत में आया है, फिर भी तेरे प्रति मेरे मन में जरा भी द्वेष नहीं है। मैं तेरा अधःपात होने नहीं दूंगा। परमेश्वर ! मेरा कोई भी शत्रु हो, मेरे उस शत्रुके अंतःकरण में तू सुबुद्धि दे!" इस प्रकार ये प्रतिदिन प्रार्थना करके सोते है। अच्छी तरह मुझे नींद आनी चाहिये, और सोते समय संसार में किसीको शत्रु मानकर एवं रखकर सोया नहीं जा सकता, ऐसा इनका एक नियम है। इनकी इस सद्वृत्ति ने अनेक हितशत्रुओंको माँफी मागने पर बाध्य किया। इन्द्रियों पर, मनपर शासन कैसे रखा जा सकता है, उनसे अपने सेवकों के समान कैसे काम लिया जा सकता है, इसका अपनेको दिन रात विचार करते रहना चाहिये, ऐसा इनका कहना है। इन्द्रियां और मन ये अपने नौकर नहीं बल्कि मालिक बन बैठे है और हम सब उनके आधीन है, यह बुरी बात है, ऐसा इन्हें महसूस हुआ है। __ श्री हरगोविन्द दासजी का यह चरित्र यद्यपि छोटा है, फिर भी स्फूर्तिदायक है। जो कुटुम्ब का संरक्षण करते और कुटुम्बके अपराजित नेता होते है, वे देश के भी नेता हो सकते है। यह साक्रटिस का कथन अमूल्य मालूम होता है ! श्रीहरगोविन्द दासजी का चरित्र सरल, प्रेमी, भविष्य के मार्ग का दर्शक और शिक्षाप्रद है। हम इनकी जिन्दगी का आदर्श अपने सामने रखें और इन के आदर्शों को अनुसरे। " न्यापाऱ्याची मध्यस्थी म्हणजे एकाला लुटायचे माणि दुसऱ्याच्या तोंडाला पाने पुसायची!!" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46