Book Title: Dwipsagar Pragnapti Sangrahani
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 3
________________ प्रकाशिका:-श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला (लाखाबावल Co. श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर (हालार) सौराष्ट्र वीर सं २५२१ विक्रम सं. २०५१ सन् प्रथमावृत्तिः १९९४ प्रतयः ७५० आभार दर्शन. अमारी ग्रन्थमाला तरफथी प्राचीन साहित्य प्रकाशन योजनामां ग्रन्थांक २९५ तरीके आश्रा द्वीपसागर प्रजात संग्रहणी प्रगट करीए छीए तेनुं सदन पू. आ. श्री वित जिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे कयुं छे. आ ग्रन्थना प्रकाशन माटे पपू. आचार्यदेवेश श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर पूज्य आ. श्री विजय जितमगांक सूरीश्वरजी म.ना शिष्य रत्न पू. पं. श्री भद्रानंद विजयजी गणिवरना शिष्यादि पू. मु. श्री मुक्तिधन विजयजी म. तथा प.म, श्री पुण्यधनविजयजी म.ना सदुदेशथी श्री श्वेतांबर मतिपूजक संघ बारेजा तरफथी सहकार मल्यो छे ते माटे उपदेशक पू. श्री तथा श्री संपनो आभार मानीए छीए. ता. १०-१०-९४ शाकमारकेट सामे, जामनगर . . महेता मगनलाल चत्र भुज त्यबस्थापक श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला

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