Book Title: Dwipsagar Pragnapti Sangrahani
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ तत्तो य महाउपमा अडेव होंति रायहाणोओ / चक्कज्जया य सच्चा सव्वा वयरज्म जा चेव / 107 / सकस्स देवरणो तायत्तीसाण अग्गमहिसीणं / तासिं खलु पत्तेयं अट्ठेव य रायहाणीओ / 108 / / जन्नामा से देवी तन्नामा तासि रायहाणीओ / इसाणदेवरन्नो तायत्तीसाण उत्तरओ / / 109 / / बावन्ना बायाला छलसीई दसजोयणसहस्सा / गोतित्थेण विरहियं खेत्तं खलु कुंडलसमुद्दे // 110 / / अथ रुचकद्वीपः / / दसकोडि सहस्साई चतारि सयाई पंचसीयाइ / बावत्तरि च लक्खा विक्खंभो रत्नमदीवस्स // 111 / / रुयगवरस्स मज्झे गुत्तमो होइ पन्वओ रुयगो / पागारसरिसरूवो रूयगं दीवं विनयमाणो / / 112 / / रुयगस्स उ उस्सेहो चउरासीई भवे सहस्साई / एगं चेव सहस्सं धरणियलमहे समोगाढो // 113 // दस चेव सहस्सा खलु बावीसं जोयणाई बोद्धव्वा / सिहरतले विक्खंभो रुयगस्स उ पब्वयस्स भदे / / 114 / / सिहरतलम्मि उ रुयगस्स चउर कूडा चउद्दिसिं तत्थ / पुवाई आगुपुब्बी तेसिं नामाई कित्तेऽहं // 115 / /

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