Book Title: Dwipsagar Pragnapti Sangrahani
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 28
________________ २३ परिमाणं सामलमाउ सुसीया सामजमाणं तु रायहाणीओ । चोइस सहस्सिया सो बाहिं वट्टारयणचित्ता ॥ २१४॥ अवरेण अ नियाणं चउदिसं हांति आयरक्खाणं । बारस पउस्सियाओ बाहिं वट्टा रयणचित्ता ।। २१५ ।। सिवमंदिराउ सालस सहस्सिया सा भवेउ अरुणस्स । अट्टमसाहस्सी वइरमंदिरा सा णलस्स भवे ।।२१६।। धरणस्स नागरणो सुहवइ परियाए दक्खिणे पासे । गंधव परियाओ भूयाणंदस्स उत्तरउ ॥ २१७।। उवत्तेन सहस्सं सहस्समेगं च मूलविच्छिण्णा । अट्टमा उ मज्झे उवरि पुण होंति पंचसए ।। २१८ ।। दो चेव जंबूदीवे चत्तारि य माणुसुत्तरनग्गम्मि । छच्चारुणे समुद्दे अट्ठ य रुवगम्मि दीवम्मि ।। २१९ । असुराणं नागाणं उदहिकुमाराण होंति आवासा । अरुणोदए समुद्दे तत्थेव य तेसि उप्पाया ।।२२० ।। दीवदिसाअग्गीणं थणियकुमाराण होंति आवासा | अरुणवरे दीवम्मि उ तत्थेव य तेसि उपाओ । २२१। चोयालसयं पदमिल्लुयाए पंतीए चंदसूराणं । तेण परं पंतीओ चउरोत्तरियाए वुडीए ॥ २२२ ॥ | जो जाई समसहस्साइं वित्थडो सागरो न दीवो वा । तावइयाओ तहियं पंतीओ चंदसूराणं ॥ २२३॥

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