Book Title: Dwipsagar Pragnapti Sangrahani Author(s): Vijayjinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ सव्वरयणस्स अवरेण तिण्णि समइच्छिऊण कुडाई । कूडं पभंजणस्सा पभ्रंजणं आढिय होइ ॥ १८॥ नलिनोदकाद्या: तीसं च सयसहस्सा दस य सहस्सा हवंति बोद्धव्वा । गोतित्थेहि विरहियं खित्तं नलिणोदगस मुद्दे ।। १९ ।। विक्खंभ परिक्खेवो सो चेव कमो उ हाइ नलिणोदे | दस चेव जोयणसए उब्विद्धो न विवसो उवो ||२०|| गाजोयणकोडी छव्वीसा दस य जोयणसहस्मा । गोतित्थेण विरहियं सुरारमे सागरे खेत्तं ॥ २१ ॥ पंचेव य कोडीओ दसुत्तरा दस य जोयणसहस्सा । गोतित्थेण विरहियं खीरबरे सायरे खेत्तं ॥ २२ ॥ वीसं जोयणकोडी छायाली दसय जोयणसहस्सा । गोतित्थेण विरहियं खेत्तं घयसागरे हाइ ||२३|| एगासीइ कोंडीण नउया दस चेव जोयणसहस्सा । गोतित्थेण विरहियं खोयवर से सागरे खेत्तं ||२४|| नन्दीश्वरद्वीप: तेवट्ट कोडिसयं चउरासीइं च सय सहस्साइं । नंदीसरा वरदीवे विक्खंमो चक्कवालेणं ॥ २५ ॥ एगासीएगनउआइ पचाणउई भवे सहस्साइं । तिण्णेव जोयणसए ओगाहित्ताण अंजणगा ||२६||Page Navigation
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