Book Title: Dimond Diary
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 13
________________ शाश्वतसुख के स्वामी है.परमात्मा । है परमात्मा। हे देवाधिदेव र शिलोकन हे विश्वकल्याणकता रेटिव रिजिनाबसाय ! श्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक विश्वेश्वर m ment" देवाधिदेवाय बिलोकनाय ! परमात्मानमरदेवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ ! त्रिलोकनाथद्धारक विश्वेश्वर देवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ । विश्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक र विश्वकल्याणकर्ता गिश्योद्धारक चिचेश्वर वहत्यिकानाय! परमात्मा देवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ ! नकर्ता विश्वोद्धारक विश्वेश्वर हे देवाधिदेव ! हे त्रिलो देवापिटर विनोकमा हे प्रभु ! आपने तो अपने कर्म रुपी शत्रुओ को परास्त करके अपनी आत्मा को अनादि के चक्रव्यूह से मुक्त कर दिया। संसार रुपी किचड़ में कमल की तरह निर्लेप बन कर आपने अपनी साधना द्वारा आत्मसिद्धि को प्राप्त किया। अतः समस्त प्रकार की आधि; व्याधि; उपाधि; ताप; संताप; परिताप, रोक; शोक; दुःख; क्लेश; भय से पीड़ित हम अज्ञानी जीवों को भी प्रभु सन्मार्ग प्रदान करो... आपकी पावन प्रतिष्ठा मात्र जिनालय मे नही हमारे मनमंदिर मे कर सके ऐसी योग्यता - सामर्थ्यता - संबलता प्रदान करें। आपके पदार्पण से हमारे मन मंदिर में से कषायों रुपी चोर परास्त हो जायेगे आपके आगमन से हम भी सदज्ञान - सदगुण - सदभाव को धारकर शाश्वत पथ के पथिक बनकर आपके श्री चरणो में पहुंचे यही मंगलकामना 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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