Book Title: Dimond Diary
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 24
________________ आख जहां भी तुम देखो ऐसी हो जाएं शटु कि वहीं परमात्मा परमात्मा दिखाई पड़े। इंद्रियां भी उसी के लिए द्वार बन सकती हैं। और हम इंद्रिय प्रार्थना में संलग्न हो सकती है। और उसी को हम कलाकार कहेंगे जो सारी इंद्रियों को परमात्मा में संलग्न कर दे; जो आत्मा से ही न पुकारे, देह से भी पुकारे । परमात्मा की रोशनी प्राणों में ही न जगमगाट, रोएं-रोएं में जगमगाए । आत्मा तो उसमें डूबे ही डूबे, यह देह भी उसी में डूब जाए। तुम्हारे प्राण तो उसमें नहाएं ही नहाएं, तुम्हारा तन भी उसमें नहा ले। तुम्हारी श्वास-श्वास उसमें लिप्त हो जाए। अभी रूप जहां दिखाई पड़ता है वहां वासना पैदा होती है-यह सच है। अब दो उपाय हैं; रूप देखो ही मत, ताकि वासना पैदा न हो; और दूसरा उपाय है कि रूप को इतनी गहराई से देखो कि हर रूप में उसी का रूप दिखाई पड़े, तो प्रार्थना पैदा हो । इंद्रियों को पूरी त्वरा देनी है, तीव्रता देनी है, सघनता देनी है। इंद्रियों को प्रांजल करना है, स्वच्छ करना है, शुब्द करना है। इंद्रियों को कुंवारा करना है। आंखें ऐसी हो जाएं शुब्द कि जहां भी तुम देखो वहीं परमात्मा दिखाई पड़े। 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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