Book Title: Dharmsagar Granth Sangraha
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Mithabhai Kalyanchand Pedhi

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Page 4
________________ किञ्चिद् वक्तव्य। आ 'धर्मसागर ग्रंथ संग्रह' नामनुं पुस्तक सत्य जिनमार्गना अन्वेषी एवा विद्वानोना करकमलमा अर्पण करवामां आवेछ। आ पुस्तकमा तपागच्छ प्रासादना स्तंभसमान पू० महोपाध्याय श्रीमद् धर्मसागर गणिवर विरचित स्वोपज्ञ वृत्तिसहित त्रण कृतिओ छ। १. श्री महावीर - विज्ञप्ति-द्वात्रिंशिका-आनी रचना पू० उपाध्यायजीए वि० सं० १६१६ मां स्तंभतीर्थ नगर (खंभात) मां करी छे, अने अनुं संशोधन एमना बंधु पू० श्रीविमलसागरजीए कर्यु छ। आमां दिगंबरादि १० कुपाक्षिकोना मंतव्योनु आगमयुक्ति थी निराकरण कयुछे।। विशेष विषयानुक्रमथी जाणवो। ___२. षोडशश्लोकी-आनुं बीजं नाम 'गुरु तत्त्वप्रदीपदीपिका' छ । आमां जघन्य-मध्यम अने उत्कृष्ट उत्सूत्रिओनुं निरूपण छे, तेमज दिगंबर आदि १० उत्सूत्रिओना एकेक उत्सूत्रनु आगम-युक्ति पूर्वक खंडन करवामां आव्यु छ ।

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