Book Title: Dhammapada 08
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 343
________________ एस धम्मो सनंतनो तुम नारकीय हो, परमात्मा कैसे नारकीय हो सकता है! तुम हो तो परम अवस्था में, लेकिन तुम लौटकर अपनी तरफ देखते नहीं । तुम्हारी आंखें बाहर भटक रही हैं। बाहर भटकती आंखें भीतर के खजाने से अपरिचित रह जाती हैं, बस, इतना ही फर्क है । फिर अगर साधु को भी यह न दिखायी पड़े कि फर्क न के बराबर है, न कुछ है, तो फिर किसको दिखायी पड़ेगा ? बुद्ध से किसी ने पूछा कि जब आप ज्ञान को उपलब्ध हुए, फिर क्या हुआ? बुद्ध ने कहा, फिर एक बात घटी - जिस दिन मैं ज्ञान को उपलब्ध हुआ, उसी दिन सारा संसार मेरे लिए ज्ञान को उपलब्ध हो गया। उस दिन से मैंने अज्ञानी नहीं देखा। बुद्ध का सारा जीवन लोगों को यही समझाने में बीता कि तुम अज्ञानी नहीं हो । तुम जिद्द करते हो कि हम अज्ञानी हैं। और बुद्धों का सारा प्रयास यही है समझाना. कि तुम नहीं हो; 'तुम्हारी भ्रांति तोड़नी है। तुम मालिक हो, तुमनें गुलाम समझा हुआ है । तुम विराट हो, तुमने छोटे के साथ अपना संबंध बना लिया। आंखें आकाश की तरफ उठाओ, सारा आकाश तुम्हारा है, तुम आंखें जमीन पर गड़ाए खड़े हो। इससे यह नहीं होता कि आकाश तुम्हारा नहीं रहा, सिर्फ तुम्हारी आंखें छोटे में उलझ गयी हैं। मगर आंखों की क्षमता आकाश को भी समा लेने की है। कितने ही छोटे में उलझे हो, जिस दिन आंख उठाओगे, उस दिन पूरा आकाश तुम्हारी आंखों में प्रतिबिंबित हो उठेगा। - बुद्ध ने कहा, जिस दिन मैं ज्ञान को उपलब्ध हुआ, सारा संसार ज्ञान को उपलब्ध हुआ। आदमियों की तो छोड़ ही दो, पशु-पक्षी, पौधे, सब आत्मज्ञान को उपलब्ध हो गए। आत्मज्ञानी जब अपने खजाने को देखता है, उसी क्षण उसे दिखायी पड़ जाता है— सब खजाना लिए चल रहे हैं; सबके भीतर दीप्त है वह दीया, सबके भीतर रोशनी जल रही है। अजीब है हालत कि लोग अपनी रोशनी नहीं देखते और भागे चले जा रहे हैं रोशनी की तलाश में; भागे चले जा रहे हैं धन की तलाश में और धन भीतर पड़ा है, ऐसा धन जिसे तुम चुकाओ तो भी चुके नहीं। जिसे तुम उलीचो तो उलीच न पाओ। जिसे तुम फेंकते जाओ और बढ़ता चला जाए, ऐसा धन है। ऐसा परम धन भीतर पड़ा है। बुद्धपुरुष तुम्हें पापी से पुण्यात्मा नहीं बनाते । तुमने अपने को देखा नहीं है, बस, तुम्हें अपने को देखने की सूझ, सीख देते हैं । यह युवक सबकी निंदा में संलग्न रहता । कारण हो तब तो चूकता ही नहीं था- - तब तो चूके ही कैसे। जिसको निंदा करनी है, वह कारण होगा तब तो चूकेगा ही नहीं । कारण नहीं होगा तब कारण निर्मित करेगा। जिसको निंदा नहीं करनी है, वह कारण तो निर्मित करेगा ही नहीं, जब कारण होगा, तब भी दया करेगा। तब भी वह कहेगा, तुम्हारी मर्जी! तुम्हें जैसा जीना हो, तुम जीओ, मैं कौन! मैं हस्तक्षेप करूं, ऐसा मैं कौन! मैं बाधा डालूं, मैं कहूं कि बुरा-भला, ऐसा मैं कौन! तुम्हारा जीवन 330

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