Book Title: Dhammapada 08
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 354
________________ ध्यान की खेती संतोष की भूमि में सकारण हैं। उनके पीछे कारण की श्रृंखला है। पहले भी ऐसा ही करता था। जन्म-जन्म इसने ऐसे ही गंवाए हैं। जितनी शक्ति इसने दूसरों की निंदा और स्वयं की प्रशंसा में व्यय की है, उतनी शक्ति से यह कभी का निर्वाण का अधिकारी हो गया होता। भिक्षुओ, इससे सीख लो। दूसरों की निंदा, दूसरों का नहीं, अपना ही अहित है। क्योंकि दूसरों की निंदा में तुम जो शक्ति व्यय कर रहे हो, उससे कुछ भी तुम्हारा लाभ होने वाला नहीं। और जो शक्ति गयी, गयी। व्यर्थ गयी। उसका कुछ सृजनात्मक उपयोग करो। जितनी बात तुम निंदा करने में व्यय कर रहे हो, उतने में भजन भी हो सकता था। उतनी ही शक्ति से ओंकार का नाद भी हो सकता था। जितनी देर तुमने गालियां दीं, उतनी देर जप भी हो सकता था। और जिस हाथ की ऊर्जा से तुमने किसी पर पत्थर फेंका, वही हाथ की ऊर्जा माला के मनके भी फेर सकती थी। ऊर्जा तो वही है। ऊर्जा में तो कोई भेद नहीं है। ___ मैं एक उल्लेख पढ़ रहा था। एक मनोवैज्ञानिक एक मित्र से मिला और मित्र को अल्सर हो गया था। मित्र एक राजनीतिज्ञ है। अब राजनीतिज्ञ को अल्सर न हो यह बड़ी कठिन बात है! तो मनोवैज्ञानिक ने कहा, तुम ऐसा करो, निक्सन का तुम्हारा जो विरोध है, वही इस अल्सर का कारण है-वह निक्सन विरोधी था, वह निक्सन को उखाड़ने में लगा था-तो तुम एक काम करो कि तुम रोज रात एक तकिए पर बड़े-बड़े अक्षरों में निक्सन लिख लो, फोटो लगा दो निक्सन की, और मारो, अच्छी पिटाई करो। जब तुम्हारा मन भर जाए, तब सो गए। इससे काफी राहत मिलेगी। नहीं तो तुम्हारे भीतर घुमड़ता रहता है, घुमड़ता रहता है, घुमड़ता रहता है, वही अल्सर बन रहा है। __ वह राजनीतिज्ञ हंसा, उसने कहा, तुमने समझा क्या है? यह मुझे पता है कि तकिया निक्सन नहीं है। मैं तो असली निक्सन को जब तक न पीट लूं, तब तक तृप्ति नहीं हो सकती, अल्सर रहे कि जाए। तकिया तकिया है, तुम किसको धोखा दे रहे हो? तो उस मनोवैज्ञानिक ने कहा, फिर ऐसा, अगर ऐसा ही है तो फिर लकड़ी काटना शुरू कर दो। यह बात आयी-गयी हो गयी। चार महीने बाद, संयोग की बात, उस राजनीतिज्ञ ने लकड़ी तो काटी भी नहीं, लेकिन चार महीने बाद किसी मित्र के साथ पहाड़ पर विश्राम को गया। और उस पहाड़ी स्थान पर जहां वे रुके थे, न बिजली का इंतजाम था, न कुछ। तो लकड़ियां काटनी पड़ी। लकड़ियां काटकर ही घर को गरम भी करना, पानी भी उबालना, खाना भी बनाना, तो उसने लकड़ियां काटीं। वह एक महीने पहाड़ पर था, लकड़ियां काटता रहा। जब लौटकर आया और डाक्टरों को दिखाया तो उन्होंने कहा, चमत्कार! तुम्हारे अल्सर खो गए। तब उसे याद आया कि उस मनोवैज्ञानिक ने, मेरे मित्र ने कहा था कि फिर लकड़ियां काटने लगो। 341

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