Book Title: Dhammapada 08
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 353
________________ एस धम्मो सनंतनो श्रृंखला को भी देखते। क्योंकि बुद्ध कहते, जो आज हो रहा है, उसके बीज कल रहे होंगे, उसके बीज परसों रहे होंगे। फसल आज कट रही है, तो आज ही थोड़े बीज बो होंगे, बीज तो जन्मों-जन्मों में बो होंगे। तो वे कहते कि यह भिक्षु न केवल ऐसा करता आज घूम रहा है, पहले भी ऐसा ही करता था। यह इसके जन्मों-जन्मों की आदत है। हर आदत के पीछे आदत होती है। __हर आदत के पीछे पुरानी आदतें होती हैं। आदत के पीछे आदत का क्यू लगा होता है। तो हम जो भी कर रहे होते हैं, वह आज ही अचानक नहीं कर रहे होते हैं; उसके पीछे करने की बड़ी श्रृंखला होती है। इसलिए तुम अगर उसे आज ही बदलना चाहो, छोड़ना चाहो, तो न छोड़ सकोगे, जब तक तुम पूरी श्रृंखला को समझकर न छोड़ने को राजी हो जाओ। __एक आदमी सिगरेट पी रहा है। हम उससे कहते हैं, छोड़ दो। वह भी जानता है कि बुरा है। और वह कहता है, छोड़ना भी चाहता हूं, छूटती नहीं। तुम श्रृंखला नहीं देख रहे हो। सिगरेट पीने के पीछे श्रृंखला होगी बहुत सी और बातों की। उन सारी बातों का जब तक बोधपूर्वक विश्लेषण न हो, जब तक यह जागरूक न हो जाए, तब तक सिगरेट न छूटेगी। __यह तो ऐसे ही है जैसे कोई आदमी फूल को काट दे और वृक्ष तो बना रहे। फिर फूल आ जाएगा। शायद पहले फूल से बड़ा फूल आ जाएगा, क्योंकि वृक्ष भी जवाब देगा। तुम पत्ता काट दो; पत्ते काटने से क्या होगा, एक पत्ते की जगह तीन पत्ते आ जाएंगे। तुम शाखा काट दो, वृक्ष बदला लेगा, वृक्ष दो शाखाएं पैदा कर देगा। आखिर उसको भी अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है! ऐसे जल्दी से मान ले हर किसी की कि एक आदमी शाखा काट गया और वह चुपचाप हो जाए और फिर शाखा न उगाए, तो क्या जीएगा, खाक जीएगा! संघर्ष करना होगा। वह दो शाखा पैदा करेगा कि काटने वाले को अब काटना हो तो दुगुनी मेहनत करनी पड़ेगी। दो काटो तो चार पैदा करेगा। __ इसीलिए तो माली जब वृक्ष को घना करना चाहता है तो काटता है। कलम करता है। क्योंकि जैसे-जैसे काटता है, वृक्ष घना होता जाता है। अगर तुम्हें बड़ा फूल चाहिए तो जिस वृक्ष पर सौ फूल लगते हैं, निन्यानबे काट दो, एक को छोड़ दो, तो वृक्ष सौ ही फूलों में जो रस बहाता वह एक में ही बहा देगा। वह जवाब देगा, वह कहेगा कि समझा क्या है! ___अगर तुम्हारी कोई आदत है, तो उसके पीछे श्रृंखला है। उसकी जड़ें हैं, पत्ते हैं, डालें हैं, वृक्ष है। और जड़ें छिपी हैं भूमि के अंदर गर्भ में। ऐसे ही मनुष्य के पिछले जन्मों में मनुष्य की जड़ें छिपी हैं। तो बुद्ध सदा कहते थे कि आज ही ऐसा करता है, ऐसा नहीं, आज ही तो कैसे करेगा! अकस्मात कुछ भी नहीं होता, अनायास कुछ भी नहीं होता। सब चीजें 340

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