Book Title: Dhammapada 08
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ एस धम्मो सनंतनो है। उनसे तो मैं इनकार भी करती रही, तुमसे मैं इनकार भी कैसे करूं, पाप तो मैंने किया है। अब तुम मुझे जो सजा देना चाहो, दो। ___जीसस ने कहा, मैं तुझे सजा देने वाला कौन? यह तेरे और तेरे परमात्मा के बीच की बात है, मैं बीच में आने वाला कौन? अगर तुझे लग गया कि पाप है, तो अब मत करना; और अगर तुझे लगता हो कि पाप नहीं है, तो तेरी मर्जी! जो तुझे पाप न लगे तो जरूर करना। रही बात निर्णय की, तो तेरा परमात्मा और तेरे बीच निर्णय होगा, मैं कौन हूं बीच में! उस स्त्री के जीवन में क्रांति घट गयी। क्रांति घट गयी इसीलिए कि इस आदमी ने निंदा नहीं की। इसने कहा, मैं कौन हूं! इस आदमी ने कोई वक्तव्य ही न दिया। इसने यह भी न कहा कि यह पाप है! इसने कहा कि तुझे पाप लगता हो तो छोड़ देना। जब तुम्हें पाप लगता है तो छूट ही जाता है, छोड़ना भी नहीं पड़ता। दूसरे के कहने से कोई छोड़ता है! और निंदा तो करना ही मत, निर्णय तो लेना ही मत। दूसरे आदमी के हम मालिक नहीं हैं। उसकी स्वतंत्रता परम है, उसकी गरिमा परम है। उसके ऊपर निंदा का एक शब्द भी उठाना सिर्फ अपनी हीनता की घोषणा है। ___ लेकिन वह युवक कारण होता तब तो चूकता ही कैसे-कारण को खूब बढ़ा-चढ़ा लेता होगा—कारण न हो तब भी कारण खोज लेता था, निर्मित कर लेता था। कोई दान न दे तो निंदा करता कि देखो कृपण, देखो कंजूस, मरेगा पापी, नरकों में सड़ेगा, इसी धन की ढेरी पर सांप बनकर बैठेगा जब मरेगा-तो निंदा करता। और कोई दान देता, तो कहता, अरे, यह भी कोई दान है! दान देना सीखना हो तो मेरे परिवार से सीखो। यह क्या मुट्ठी-मुट्ठी दे रहे हो! अगर कोई किसी दूसरे को दान देता, तब तो वह बहुत ही निंदा करता। उसको देता तब भी नहीं छोड़ पाता था निंदा करना, लेकिन दूसरे को देता तब तो वह बहुत ही निंदा करता। इसके साथ ही साथ उसका दूसरा काम था, अपने परिवार की प्रशंसा, अपनी जाति की प्रशंसा, अपने वर्ण की प्रशंसा। खयाल करना, तुम जब अपने देश की प्रशंसा करते, अपनी जाति की, अपने वर्ण की, अपने धर्म की, अपने कुल-परिवार की, तो तुम वस्तुतः क्या कर रहे हो? तुम प्रकारांतर से अपनी प्रशंसा कर रहे हो। जब तुम कहते हो, भारत देश धन्य है, तो तुम क्या कह रहे हो? तुम यह कह रहे हो कि मैं भारतवासी हूं। अगर तुम चीन में पैदा हुए होते तो तुम कभी न कहते, भारत देश धन्य है। तुम कहते, चीन देश धन्य है! तुम जहां पैदा होते, वही देश धन्य होता। यह देश की प्रशंसा नहीं है, यह बड़ी तरकीब से अपनी प्रशंसा है। यह आत्म-प्रशंसा है। __तुम कहते हो, हिंदू-कुल धन्य है! जैन से पूछो। वह कहता है, जैन-कुल धन्य है! बौद्ध से पूछो। वह कहता है, बौद्ध-कुल धन्य है। यह संयोग की बात है कि तुम जैन-घर में पैदा हो गए, इसलिए जैन-कुल धन्य हो गया। यह संयोग की बात है कि 332

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378