Book Title: Davvnimittam Author(s): Rushiputra Maharaj, Suvidhisagar Maharaj Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal View full book textPage 2
________________ : : समर्षण विश्ववन्ध श्रमणपरम्परा के मुकुटमणि, अनेक गुणों के समाधार,उदारमनस्वी, मात्रमात्रपरिग्रही.स्व-परहितैषी, चतुर्विधाराधनाराधक, विशिष्ट चिन्तक. ___ परिशुद्धमतिधारक,महागुणधनी, जितमदनविलासी. व्यावृत्यवित्तस्पृह, मानवता के मानद प्रतीक, महाप्राज्ञ, शालीन व्यवहार के व्यवहर्ता, लोकहा, भक्तों के हृदयाभरण, अविचल संकल्प के स्वामी, भक्ति-कर्म, ज्ञान-प्रतिभा-प्रेमपरिश्रमादि अनेकानेक गुणरत्नों के रत्नागार, प्रतिभापर, प्रशमाकर, गुरुदय अर्थात् परमपूज्य आचार्य शिरोमणि श्री सन्मतिसागर जी महाराज और परम पूज्य आचार्यकल्प श्री हेमसागर जी महाराज के पावन करकमलों में प्रस्तुत कृति सभक्ति समर्पितPage Navigation
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