Book Title: Dashvaikalika Sutram
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Shripalnagar Jain S M P Trust

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदशवैकालिकं श्रीहारि० वृत्तियुतम् ॥६॥ www.kobatirth.org पासे आ कार्यनो प्रतिषेध निर्णीत कर्यो अने आगमकक्षमां पण प्रवेश निषेध कर्यो अने कम्प्युटरोमां कम्पोजींग-प्रूफरीडींग कार्य मात्र पुरुषवर्गनां आपरेटरो- एडीटरो द्वारा कराववानो अमल कर्यो। दररोज आ कार्य ना प्रारंभथी अंत सुधी धूप-दीपना प्रज्वलनपूर्वक अपवित्रतानो नाश अने अर्चनीयतानुं स्थापन करवापूर्वक परममंगलकारी अने परमपवित्र आगमग्रंथोनी गरिमा जाळववानो यथाशक्य प्रयास कर्यो । जो के आकार्य तो मात्र पुनः सम्पादननुं छे। प्राचीन हस्तप्रतोमांथी संशोधनकार्यनो अथाग प्रयत्न तो आगमोद्धारक पूज्य सागरजी महाराज (पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज) आदिओ कर्यो छे जेनो श्रेय तो तेओना फाळेज जाय छे। अन्य संशोधको अने संपादनोनो आ संपादनमां उपयोग कर्यो छे तेनो उल्लेख ते ते स्थळोओ कर्यो छे । गणिपिटक भेटले आचार्यभगवंतोनी अत्यंत किंमती अने गुप्त संपत्ति। तेनो दुरुपयोग न थाय माटे साधु-साध्वीभगवंतोने उपयोगमां आवतां ज्ञानभंडारो तथा पू. आचार्यादि गुरुभगवंतो जेमने जरूर हशे तेमने वितरण करवानुं नक्की कर्यु छे । श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट श्रीपालनगर, १२ जमनादास मेहता मार्ग, वालकेश्वर, मुंबई ४००००६. विक्रम सं० २०६३ वीर सं० २५३३ ट्रस्टीगण श्री श्रीपालनगर जैन श्वे० मूर्तिपूजक देरासर ट्रस्ट For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीयम् ॥ ६ ॥

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