Book Title: Damannaka Kul Putrak Ras
Author(s): Kalpana K Sheth
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ 58 शेठ एक तिहां किण वसइ रे , आस्या घरिनइ आवीयउ रे, तिण अवसर तिहां विहरता रे, करइ अभिग्रह नवनवा रे, मुनिवर बेहु गोचरी रे , वृद्ध कहइ लघुसाधुनइ रे , ए घरनउ पति ए हुस्यइ रे, एक भीतिनइ अंतर रे , सागरपोत समृद्ध रे, बा० देखी मंदिर वृद्ध रे , बा० ॥५५. तु० धरता धूनउ ध्यान रे , बा० चाढइ संयम-वान रे , बा० ॥५६. तु० आवइ सेठ-दुवार रे , बा० सामुद्रक अनुसार रे , बा० ५७. तु० बालक थयउ युवान रे , बा० सेठ सुणी वात कान रे , बा० ॥५८. तु० मनमां धरीय विषाद रे , बा० भोगवस्यइ कांइ स्वाद रे , बा० ५९. तु० सत्यवचन नहीं जूठ रे , बा० एहनइ करूं अदीठ रे , बा० ॥६०. तु० अंकुरनी उत्पत्ति रे , बा० पाडु तासु विपत्ति रे , बा० ॥६१. तु० भोलवइ सागर बाल रे , बा० पाडइ ते तकाल रे , बा० ॥६२. तु. वज्राहत सम ते थयउ रे, कष्ट करी धन अर्जीयउ रे, चारित्रीयइ बोल्यउ तिको रे, तउ हिव मनमा चीतवइ रे , बीज बल्यां किम होइसी रे, एह विचार चित चीतवइ रे , मोदक सखरउ आपिनइ रे, सइघउ कर्यउ चंडालनइ रे , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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