Book Title: Damannaka Kul Putrak Ras Author(s): Kalpana K Sheth Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ 56 अनुकंपा वसि ऊभउ द्रहनई कुल स्वजन कुटुंब अनेक कहउ पीण हिंसा दुख मूल. ॥३५ वाधइ व्याधि कुपथ्यनी दुख पामइ जिम जीव तिम हिंसा करी आतमा परभवि पाडइ रीव. ।।३६ इम चीतवि आव्यउ फरी त्रीजइ दिनि गयउ जाम जात पड्या मच्छ काढता मुडी पाख इक ताम. ॥३७ आव्यउ घरे ऊतावलउ तिहां तोडी मच्छ-जाल , कुण देखइ दुख नरकना परिजन काजइ आल. ॥३८ सीख करी सहु कुटुंबसु अणसण कीधउ सुनंद आऊखउ पूरी कीयो पालो धरम अमंद. ।।३९ ढाल-४ (चूडलइ जोवन जिलि रहीयो , एहनी) तिहाथी चविनइ ऊपनो देश मगध सुखकार , राजगृह नामइ भलो पत्तन भरत मझार. ए फल देखउ धरमनउ पाम्यउ छइ परलोक , धरम थकी सुख संपनउ हरि गयउ दुख सोक. ए फल देख उ धरम नउ , ए आंकणी. राजा राज करइ तिहां नामइ श्रीनरवर्म तेजइ करि दिनकर समउ भाजि गयउ असि भर्म. ॥४२.ए. ' वसइ तिहां व्यवहारीया धनवंत सगला लोक इहक आवइ याचिवा आपइ सगला थोक. ॥४३.ए. एक तिहां व्यवहारीयउ नाम अछई मणिकार, मणि माणिक सोना तणउ नहि को तेहनई पार. ||४० ॥४१ ॥४४.९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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