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ज्ञानधर्मकृत दामनककुलपुत्रक रास
- कल्पना के. शेठ प्रास्ताविक :
प्राचीन समयथी मानवने कथा के वार्तामा रस रह्यो छे. आना परिणामरूपे विश्वमा भिन्न भिन्न देश, भाषा, समाज अने संस्कृतिना आरंभना समयथी ज कथा के वार्ता लखाती आवी छे. भारतमां छेक ऋग्वेदथी शरू करीने ब्राह्मण, आरण्यक अने उपनिषद्काल सुधी आq साहित्य लखायेलुं मळी आवे छे. संस्कृत-प्राकृत साहित्यमां तो 'बृहत्कथा', 'वसुदेवहिंडी', 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह', 'कथासत् सागर', बृहत्कथामंजरी', 'वैतालपंचविशति', 'पंचतंत्र', 'हितोपदेश' इत्यादि अनेक कथासंग्रहो मळी आवे छे.
प्राचीन अने मध्यकालीन गुजराती साहित्य पण आ वारसो साचवे छे. एना फळस्वरूपे इ.स.नी बारमी सदीथी आरंभीने आज सुधी आवी अनेक कथाओ जैन अने जैनेतर कविओ वडे लखाइ छे. अत्रे आवा कथा साहित्यनी एक लघु कृति 'ज्ञानधर्मकृत-दामन्नककुलपुत्रकरास' संपादित करीने आपवामां आवे छे.
रास साहित्य ए समग्र प्राचीन गुजराती साहित्यनो एक प्रकार छे. प्राचीन मध्यकालीन गुजराती साहित्यनो घणो मोटो भाग 'रास' नामे ओळखाती रचनाए रोकेलो छे. रास प्रकार ए अपभ्रंशभाषानो गुजराती भाषाने मळेलो वारसो छे. सामान्य रीते रास साहित्य १२मा सैकाथी १८मा सैका सुधीना गाळामां विशेषपणे मळी आवे छे. प्राचीन मध्यकालीन गुजरातीमांथी मळी आवतुं रास साहित्य अत्यंत विशाळ छे, अने भाषा विकासनी दृष्टिए, इतिहासनी दृष्टिए तेमज साहित्य स्वरूपनी दृष्टिए तेनुं घj ज महत्व छे. रासनां एकथी वधु प्रकारो हतां. रास गेय हता अने नृत्यमां पण तेनो उपयोग थतो हतो.
आवा अनेक रासोमांना महद् अंशे रासो हजी अप्रगट अने हस्तप्रत स्वरूपे ग्रंथभंडारोमां सचवायेला मळी आवे छे. अत्रे एवा एक अद्ययावत् अप्रकाशित ज्ञानधर्मकृत 'दामन्नककुलपुत्रक रास'ने संपादित करी प्रस्तुत कर्यो छे.
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प्रतवर्णन अने संपादन पद्धति उपर जणावेल कृतिनुं संपादन लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादना मुनि पुण्यविजयना हस्तप्रत भंडारमाथी प्राप्त एक मात्र प्रत परथी करेल छे.
आ प्रतनो क्रमांक ३८०९ छे. प्रतमां कुल्ले चार पत्र छे. पत्रनु कद २६.० x ११.५ से.मी छे. पत्रनी बन्ने बाजु २.५ से.मी. नो हांसियो छे. प्रत्येक पाना पर १७ पंक्ति छे. कुल्ले १३६ कडीओ छे. पातळा कागळनी आ प्रत देवनागरी लिपिमा काळी शाहीथी ग्रंथकारे पोते लखेली - स्वहस्ताक्षर प्रति छे. पाठ सुधारेला छे. पत्रनो क्रमांक जमणी बाजुए हांसिया मां दर्शाव्यो छे.
आरंभमां भले मींडु कर्या पछी कृतिनो प्रारंभ करेलो छे. अने अंतमा 'इति दामनककुलपुत्रकसंबंधोयं' एम लखेलुं छे. प्रतनो लेखन सवंत् मळ्यो नथी. पण रचना संवत ‘सत्तरइ सइ पइत्रीस समई' अर्थात् १७३५ मळे छे अने स्वहस्ताक्षर प्रत होवाथी तेज समय लेखननो होवानुं अनुमान करी शकाय.
एक मात्र मळेल प्रत परथी प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कर्यु छे तेथी प्रतनो पाठ ग्रंथपाठ तरीके लीधो छे. क्वचित् लेखनमां थयेल दोष सुधार्यो छे. काव्यना कर्ता : ज्ञानधर्म
काव्यना कर्ता के कविनाम के गुरुपरंपरा विषे काव्यना अंतिम भागमा श्रीखरतरगच्छ दिनकरु ए , युगवर श्रीजिनचंद्र वि० रीहड वंसई परगडउ ए , जिण प्रतबोध्या नेरंद्र
१२८ वि० तासु सीस मतिसर गुरु ए , पुण्य प्रधान उवझाय वि० तासु सीस सुमतिसागर भला ए , पाठक पंडितराय
१२९ वि० साधुरंग वाचकवरु ए , सकल शास्त्र प्रवीण वि० तासु सीस जगि जाणीय ए , पाठक.श्रीराजसार
१३० वि०
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तासु सीस ईण परि भणई, ज्ञानधंरम हितकार वि० सत्तरई सई पईत्रीस समइ, विजयदशमि रविवार
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शांतिनाथ सुप्रसादथीए, रचीयउ ए अधिकार वि० राजई धर्मसुर्रिद नइए, रचीया खंभात मझार
१. जैन गूर्जर कविओ
१३२ वि०
मळता उल्लेख परथी कृतिना कवि खरतरगच्छना युगवर श्रीजिनचंद्रनी परंपराना पाठक राजसारना शिष्य ज्ञानधर्म छे. कृतिमां प्राप्त उल्लेख परथी आ काव्य रचना सवंत १७३५ ( इ.स. १६७९) मां खंभातमां थइ छे एम कही शकाय . आकृति सिवाय ज्ञानधर्मे अन्य कोइ कृति रची होवाना उल्लेख मळ्या नथी. '
काव्यनो बंध
एकसो छत्रीस (१३६) कडीना आ काव्यनो पद्यबंध मुख्यत्वे दुहा- चोपाई अने देशीओनो छे. कविनुं शब्द प्रभुत्व मध्यम कोटिनुं छे. प्रास प्रमाणमां ठीक सारा मळे छे.
१३१ वि०
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(४
राजसारशिष्यज्ञानधर्मकृत
दामनककुलपुत्रकरास स्वस्ति श्री मंगलकरण , प्रशमी पास जिणंद श्रुतदेवी सद्गुरु नमुं, टालई भव-दुख-फंद. श्रीजिनवर ईम उपदेशई , मनवंछित दातार, धरमामाहि प्रधान छई ,
विरतिधरम श्रीकार. तिणि उपरि दृष्टांत ,
ए सुणज्यो चतुरसुजाण , कुलपुत्रक दामन्नकई ,
जिम कीधउ पचक्खाण. तासुं कथा हु वर्णवू ,
सांभलिज्यो सहु कोय , पाप-तिमर दूरइ हरई ,
दिनकर-कर जिम सोय.
ढाल-१ चउपइनी जंबुद्वीप एहिज विख्यात , दक्षिण दिशा तिहां भरत कहात, गजपुर नामई नगर उदार , ऋद्धि तणउ जिहां को नही पार. ॥५ सुनंद तिहां कुलपुत्रक एक , वसइ विचक्षण अति सुविवेक भद्रक नइ सुविनित प्रवीण , सकल गुणे संपन्न न हीण. ॥६ जिनदासक श्रावक छई तसुमित्र , धर्म-बुद्धि करि गात्र पवित्र , जिनधर्मी गुरुभक्त दयाल , त्यागी भोगी नइ चउसाल. ते बेहुनइ अधिक सनेह , चित्त एक जूजइ देह , दंभरहित ते पालइ प्रीति , उत्तम-कुलनी एहि ज रीत. ॥८ इण अवसरि उद्यान मझार , समवसर्या गिरूआ गणधार , धर्मधोष नामई गुणवंत , ज्ञान क्रिया सोभित उपशांत. ९ दशविध साधु धरम जे धरई , सर्व जीवनी रक्षा करई , क्रोधादिक कीधा सहु दुर , सतरभेद संयम भरपुर.
॥७
।।१०
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॥१५
मनशुद्ध भावना भावई बार , छंडई पातक भेद अढार , तप जप करि साधई शिव-पंथ , निरमम निरहंकार निग्रंथ. ॥११ मधुकरनी परि ल्यई आहार , दोष लिगावइ नहीय लिगार, साधुधरम सुधा प्रतिपाल , जिण वांद्या जायइ जंजाल. ॥१२ एहवा देखी नयणे साध , ते पाम्या बे हरख अगाध , चालउ ए मुनीवर वंदीयइ , सुधउ समकित लहीस्युं हीयइ. ॥१३
दूहा देखीनइ आव्या तिहां
देइ प्रदक्षिण तीन , चरण-कमल प्रणमी करी , ध्यान धरइ लयलीन. ||१४ उचित ठाम जोइ करी ,
बइठा सनमुख आवि , घरम-मारग काइ उपदिशउ , गुरजी इण प्रस्तावि.
ढाल-२
(आप सवारथ जग सहरे , एहनी) उपदेश भाखइ साधुजी ,
करउ मांसनउ परिहार , जीवां तणउ ए पिंड छइ , ए भाख्यउ रे भगवंत विचार. ॥१६ सांभलउ भवियण हित भणी रे, ए तउ विरूपउरे रसनउ अभिलाख ए सेव्यइ जीव दुख लहइ रे, एम बोलइरे गुरु सूत्रनी शाख. ॥१७
ढाल-३ (सांभलउ भवियण हित भणी रे . . . . ए आंकणी) ठाणांगसूत्र मांहे कह्या
गति नरगना हेतु च्यार जिहां अशुभ आउखउ लहइ , वेदन रे जीव विविध प्रकार.
॥१८.सां.
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अति घणा आरंभ जे करइ, परमांस भक्षण वलि करइ,
-
संवेगरस मनमां वस्यउ, अभिग्रह लीधउ एहवो
"
तिण समई तिहां किण प्रगटीयो, हाहाकार हियउ तिहां,
छठा अरउ सरिखउ थयउ, प्रेम-भाव सहु माठा पड्या
एहव घरणी इम भणइ, खंजनी पर बईसी रह्यो
>
.
उद्यम विना किम चालिस्य ई, सरवर तटइ जइ माछला,
एहवा वयण सुणी करी, परजीव आतम सम अछई,
प्रिय तणा वचन सुणी करी, वंच्यउ तुमइ रे वरतीये,
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मूर्छित परिग्रहमाहि वध स जीव हो इंद्री पांचाहि.
।।१९. सां
गुरुवचन सांभलि चित्त,
न करूं वध हो पर आप निमित्त.
कल्पांत सम दुक्काल,
माल मुलक तिहां खाधा ततकाल.
२१. सां
॥२०. सां
जन करई मांसनउ भक्ष,
जाणे माणस हो राक्षस परतक्ष.
निज कुटुंब मेटी भूत,
पालिस किम हो घरना पूत.
।।२२.सां
।। २३. सां
आजीविका सुणि कंत, लेइ आवउ हो खावां निश्चित.
।। २४.सां
बोल्यउ तिहां ततकाल, तिण न करुं हो हिंसा विकराल. ।। २५.सां
1
बोली प्रिया तब वयण, धूतारा रे ते नहीं तुझ सयण.
।। २६.सां.
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ए कुटुंब दीन दयामणउ, भोजन विना किम प्राणनी,
अहम प्राण छुटइ वल्लहा मुess दिखाडिस लोकमां
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भरतार कथन करई नही, शाला कहइ तटकी तबई,
ते स्वजन नउ प्रेर्यउ थकउ, मीन ग्रहण ऊंडई जल तिहां
नदीयां मिलइ जीम एकठी, तिम जालमांहि आवी पडई,
मनमांहि अनुकंपा वसई, विण भोगव्या छुटई नहीं,
,
ततकाल जलमांहि नांखीया निज कुटुंब सुखनइ कारणइ,
पाछउ फिरि आयवउ घरे, बीज दिन प्रेर्यउ थकउ,
,
55
देखी कृपा नहीं कांइ, धरवानी हो सद्दहणा थाई.
किम लाज रहिस्यइ तुझ,
किम करिनइ हों ते कहि तु मुझ.
।। २८. सां.
आग्रह कीयो प्रिया जोर, माणस छई हो तुं अथवा ढोर.
।।२७.सां.
दह गयउ जलनइ तीर, जान नाखइ हो धीवर जिम वीर. ।। ३०.सां.
भर समुद्र सिंधु मझार, तडफडता हो मच्छ लाख हजार.
॥२९. सां.
दूहा
परतक्ष देखी पाप
जीम पामइ हो भव भाव संताप.
तिणि दिन संध्याकाल, चाल्यउ लेइ जाल.
।।३१.सां.
दुक्खीया देखी मछ
ए कारिज हो किम किजइ तुच्छ.
॥३२.सां.
३३.सां.
||३४
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अनुकंपा वसि ऊभउ
द्रहनई कुल स्वजन कुटुंब अनेक कहउ पीण हिंसा दुख मूल. ॥३५ वाधइ व्याधि कुपथ्यनी
दुख पामइ जिम जीव तिम हिंसा करी आतमा
परभवि पाडइ रीव.
।।३६ इम चीतवि आव्यउ फरी
त्रीजइ दिनि गयउ जाम जात पड्या मच्छ काढता
मुडी पाख इक ताम.
॥३७ आव्यउ घरे ऊतावलउ
तिहां तोडी मच्छ-जाल , कुण देखइ दुख नरकना
परिजन काजइ आल.
॥३८ सीख करी सहु कुटुंबसु
अणसण कीधउ सुनंद आऊखउ पूरी कीयो
पालो धरम अमंद.
।।३९ ढाल-४
(चूडलइ जोवन जिलि रहीयो , एहनी) तिहाथी चविनइ ऊपनो
देश मगध सुखकार , राजगृह नामइ भलो
पत्तन भरत मझार. ए फल देखउ धरमनउ
पाम्यउ छइ परलोक , धरम थकी सुख संपनउ
हरि गयउ दुख सोक.
ए फल देख उ धरम नउ , ए आंकणी. राजा राज करइ तिहां
नामइ श्रीनरवर्म तेजइ करि दिनकर समउ
भाजि गयउ असि भर्म. ॥४२.ए. ' वसइ तिहां व्यवहारीया
धनवंत सगला लोक इहक आवइ याचिवा
आपइ सगला थोक. ॥४३.ए. एक तिहां व्यवहारीयउ
नाम अछई मणिकार, मणि माणिक सोना तणउ नहि को तेहनई पार.
||४०
॥४१
॥४४.९
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४७.ए.
घरि घरिणी छइ तेहनइ विस्तरीयउ यश जेहनउ
आवी तसु कुक्षि उपनउ , संपूरण दिवसे थए कुटुंब सहु मेली करी , माबापना मन हरखीयां चंदकला जिम दिन प्रतइ पिता मनोरथ पूरतउ हुयउ वस्तर आठनउ प्रगटी तेहवइ तेहनइ खबर थइ दरबारमां वृत्ति करउ एहनइ घरे
सुयशा नाम अनुप परिमल कुशम सरुप. ॥४५.ए० उत्तम जीव सुनंद जनम्यउ पूनिम-चंद. ।।४६.ए० दामनक नाम दीध मंगल कारिज कीथ. अनुक्रमि वाधउ बाल, लोचन भाल विशाल. ॥४८.ए. थयउ कलान उधार घरे भयंकर मारि. ॥४९.ए० राजा सांभली वात न हुवइ लोकनउ घात. ॥५०.ए. दूहा सगा-सयण कुटुंब जिम दूरवातइ अंब. ॥५१,ए. पूरव पुण्य प्रभाव
नाठउ देखी दाव ।।५२.ए. ढाल-५ (पारधियानी)
भूख करो पीडाय रे बालक ते , त्रिपति दुहेली थाय रे बालक ते. ॥५३ अचरिज एह, बालक ते लहीयइ लाछि अछेह रे . .बा० ॥५४
मात पिता बांधव सहु अनुक्रमि क्षय पाम्या तदा रह्यउ दामनक एकलउ कुंकर कृत विवरइ करी
हिव पुरमा भमतउ थकउ रे , धरि धरि भिक्षा मांगता रे तुम्हे जोवउ रे जोवउ पूरव पुन्य तणइ उदइ
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शेठ एक तिहां किण वसइ रे , आस्या घरिनइ आवीयउ रे,
तिण अवसर तिहां विहरता रे, करइ अभिग्रह नवनवा रे,
मुनिवर बेहु गोचरी रे , वृद्ध कहइ लघुसाधुनइ रे ,
ए घरनउ पति ए हुस्यइ रे, एक भीतिनइ अंतर रे ,
सागरपोत समृद्ध रे, बा० देखी मंदिर वृद्ध रे , बा०
॥५५. तु० धरता धूनउ ध्यान रे , बा० चाढइ संयम-वान रे , बा०
॥५६. तु० आवइ सेठ-दुवार रे , बा० सामुद्रक अनुसार रे , बा०
५७. तु० बालक थयउ युवान रे , बा० सेठ सुणी वात कान रे , बा०
॥५८. तु० मनमां धरीय विषाद रे , बा० भोगवस्यइ कांइ स्वाद रे , बा०
५९. तु० सत्यवचन नहीं जूठ रे , बा० एहनइ करूं अदीठ रे , बा०
॥६०. तु० अंकुरनी उत्पत्ति रे , बा० पाडु तासु विपत्ति रे , बा०
॥६१. तु० भोलवइ सागर बाल रे , बा० पाडइ ते तकाल रे , बा०
॥६२. तु.
वज्राहत सम ते थयउ रे, कष्ट करी धन अर्जीयउ रे,
चारित्रीयइ बोल्यउ तिको रे, तउ हिव मनमा चीतवइ रे ,
बीज बल्यां किम होइसी रे, एह विचार चित चीतवइ रे ,
मोदक सखरउ आपिनइ रे, सइघउ कर्यउ चंडालनइ रे ,
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मातंग एक वसइ तिहां रे, मुह मांग्यउ द्रव्य आपिनइ रे,
ल्यइ लाहो लखिमी तणो पूरइ वंछित आपणा
ए बालकनउ वध करी रे, इम कहीन घरि आवियउ रे,
खंगिल तिहांथी नीकलइ रे, हणवान बुद्ध करी रे, भावी ते तउ सही होय पामइ जीव कीया निज कर्म,
नयण देखी बालनइ रे, विण अपराधइ किम हणुं रे,
ए बालइ एहनो किसुं रे, कोमलतनुं कंचनसमउ रे,
मोहंती पापी नही रे, परधनलोलुप हुं थइ रे,
ए करम करिवा भणी रे, बालहत्या नउ ते भणी रे,
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खंगिल तेहनउ नाम रे, बाo कहइ करि माहरउ काम रे,
दूहा
विलसइ भोग संयोग, जन्मांतर पुन्य योग.
ले आवे अहिना रे, बा० सागरपोत सुजाण, बा०
ढाल- ६
विणसाड्यउ कोइ काज, एहन किम हणुं आज.
बाo
॥६३. तु०
बालकनइ ले साथि, सुणज्यो प्राणि खड्ग लीयो निज हाथि सुणज्यो प्राणि. टाली सकइ नहीं कोय
•
आंकणी.
सु०
ऊपनी करुणा चित्त, सु० सेठ तणउ ले वित्त.
उद्यत हुं थयउ मुढ, सु० पाप करूं किम गुढ.
॥६४. तु०
॥६५. तु०
अवर अधम इण काज, सु० बालक कां हणुं आज.
?
॥६६
॥६७. सु०
सु०
॥६८. सु०
॥ ६९. सु०
१७०. सु०
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जीवउ बालक बापडउ रे , वींटी छेदी आंगुली रे,
नाठउ वचन सुणी करी रे , नयण देखी सीहनइ रे,
सागरपोतनइ गोकुलइ रे, सुनंद नाम गोकुलतणउ रे,
सौम्य मूरति शिशु निरखिनइ रे , राख्यउ पुत्रपणइ करी रे ,
अनुक्रमि ते मोटउ थयउ रे, यौवनवय पाम्यउ तिहां रे ,
ल्युं विण धन ए पाशि , सु० बालक नइ कहइ नाशि.
॥७१. सु० थरहर ध्रुजइ तेह , सु० नासइ मृगजीव लेह.
७२. सु० ततखणि पुहतो सोय , सु० अधिपति तिहां किण जोय.
॥७३. सु० हरख्यउ सुनंद सुभचित्ति , सु० सुंप्यउ गोकुल वित्त
७४. सुः वधइ जंद(?) जयु नित्र , सु० अधिक पितानउ हित्र.
।।७५. सु० अंगुलिनउ अहिनाण , सु० हिव जीवित परमाण. ॥७६. सु० दूहा गोकुल देखण काजि तिहां कण सरखइ साजि. ७७ देखी सुंदर गात तब कहइ वीतक वात. मुनि भाखी जे वाच तउ सही थास्यइ साच.
हिव पूठइ चंडाल लइ रे , सागर देखी खुसी थयउ रे ,
सागर जायइ अन्यदा देखइ दामन्नक प्रतइ छेदी अंगुलि देखिनइ पूछइ सागर नंदनइ सुणी सेठ मनि चीतवइ बाह्य विभव स्वामी थयउ
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तव हिव उभगवउ नहीं
करिवउ कोइ उपाय उधम कीधइ सर्वथा
कारिज-सिद्धि जि थाय. ॥८०.
ढाल-७
(कपुर हुवइ अति उजलउ रे , एहनी) मनसुं एम विचारिनइ रे , सेठ चाल्यउ तिण वार , पाछउ राजगृह भणी रे,
धरतउ देख अपार रे. मानव देखउ कर्म सरुप , इणवसि छइ रंक भूपरे आंकणी
||८१. मा० देख० हिवइ नंद कहइ तुम्हे रे , उतावला किण हेत , सेठ कहइ इक काम छइ रे , किण हीस्युं संकेत रे ,
॥८२. मा० दे० बइसउ स्वामी इहां तुम्हे रे , मुझ पुत्र मूंकउ एह , लेख लिखी आपइ तिहां रे , चाल्य उ सेठनंइ गेह रे ,
॥८३. मा० दे० राजगृह उद्यानमइ रे ,
कामदेव प्रसाद , वीसामउ तिहांकिण लीयउ रे , थाकउ पंथ विषाद रे,
॥८४. मा० दे० सूतउ तिहांकिण देहरइ रे , रूप-पुरंदर सोय , तेहवइ आवइ कन्यका रे , जाणे अपछर होय रे ,
॥८५. मा० दे० सागरशेठनी ते सुता रे,
नाम विषा छइ लास , पूजी प्रतिमा दिन प्रतइ रे , मांगइ वर धउ खास रे,
॥८६. मा० दे०
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तेहवइ देखी तिहांकिणइ रे , सूतउ भरनिंद्रा वसइ रे ,
दामनक गुणवंत , मनमोहन दीसंत रे,
॥८७. मा० दे०
मुद्रित कागल तातनउ रे , लेख वांचइ सुंदरी रे ,
स्वस्ति श्री गोकुल थकी रे , समुद्रदत्त सुतनई लिखई रे ,
विष देज्यो नर ए भणी रे , रखे विलंब करउ इहां रे ,
बाला देखी पासि , प्रगट वचन परकाशि रे,
॥८८. मा० दे० श्रेष्ठी सागरपोत , इणि वातइ सुख होत रे,
॥८९. मा० दे० वांची लेख तुरत , वात राखेज्यो चित्त रे,
॥९०. मा० दे० अंजन शलाका लेइ , देज्यो विषा . . . . . . . .
॥९१. मा० दे० मूकी ठामो ठामि भाग्यई थास्यई काम रे,
॥९२. मा० दे०
वांची ते पत्र शेठ-पुत्रिका रे, विष शब्दइ कानो दीयउ रे ,
कागल बीडी तातनउ रे , हरख धरी आवी घरे रे ,
दूहा
।।९३
सूतउ ऊठी सज थई , आपई सागरपुत्रनइ समाचार वांची करी , तिणहिज दीनरउ थापयीउ
आवइ नगर मझार, ते कागल तिणवार. तेड्याव्या बहु विप्र लगन गोधुलक क्षिप्र.
।।९४
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ढाल-८ (कहियुं किहांथी आवीयउ रे लाल , एहनी) समुद्रदत्त हरखइ करे ले लो , 'करइ वीवाह मंडाण रे , सोभागी. आरिम कारिम सहु कीया रे लो , काज चढ्यउ परमाण रे , सोभागी.
॥९५. दामन्नक परणइ तिहां रे लो , पुण्यइ परमाण रे सो० गोरी गावइ सोहला रे लो , कोकिल कंठवणाव रे सो०
॥९६. दा० इण अवसरि गोकुल सुणी रे लो , विवाह केरी वात रे सो० सागरपोतइ जन-मुंखई रे लोल , ' खेद धरइ बहु भात रे सो०
॥९७. दा० मइ अनेरउ चीतव्यउ रे लो , थययउ अनेरउ काम , सो० लहणइथी दयणइ पड्या रे लो , थयइ किम आराम रे. सो०
॥९८. दा० दाय उपाय करीसुं वली रे लो , करस्युं एहनउ घातउ रे सो० बेटीनउ दुख अवगणी रे लो , मारणरी करइ वात रे सो०
॥९९. दा० रौद्र-ध्यान धरतउ थकउ रे लो , आवइ खंगिल गेहरे सो० मारा मारी तुं ए सही रे लो , मुंह माग्यउ द्रव्य लेह रे सो०
॥१००. दा० पहिली मुझनइ भोलव्यउ रे लो , देखाडी अहिनाण रे सो० तिण परितुं हिव मत करे रे लो , हरज्ये एहना प्राण रे सो०
||१०१. दा०
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खंगिल बोल्यउ ततखिणइ रे लो, ते मुज दृष्टिए दिखाडी रे सो० फलइ मनोरथ ताहरा रे लो , भारु तेह पछाडि रे सो०
॥१०२. दा० संकेत मारण करउ करी रे लो , देवी दहेरामांहि रे सो० घरि आव्यउ ऊतावलउ रे लो, धरतउ मनि उछाहि रे सो०
॥१०३. दा० परण्या देखी बेहुनइ रे लो , बोलइ शेठ वचन रे सो० कुलदेवी पूज्या विना रे लो , नही पामइ सुख तन्न रे सो०
॥१०४. दा० एम कही शेठ ऊठीयउ रे लो , भरीय चंगेरी फुल रे सो० रवि आथमतइ चालीया रे लो , करज्यो पूज अमूल रे सो०
॥१०५. दा० अर्चा ऊपगरण ल्येउ तुम्हे रे लो , वल्लभ अस्त्री साथि रे सो० सागरपुत्र दीठा तिण समइ रे लो , पूछइ झाली हाथ रे सो०
॥१०६. दा० जास्युं देवी देहरइ रे लो , करवा पूज रसाल रे सो० पूज अवसर तुम्ह नही रे लो , वीभक्त संध्याकाल रे सो०
॥१०७. दा० हुं जाइसि बइसिउ तुम्ह रे लो , ऊपगरण आपउ मुह्य(ज्ज) रे लो० नवपरणीत जास्यउ किहां रे लो , मनमा आणउ वज्ज रे सो०
॥१०८. दा०
दूहा
उपगरण लेइ चालीय पूजा करीवा आवीयउ
भगनी-पति बइसारि देवीय तणइ दुवारि
॥१०९
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दहेरामांहे पइसता
खडागइ छेदाउ सीस , खंगिल जाण्यउ मों भणी हिव करिस्यई बगसीस ॥११०
ढाल-९
(केकइ वर मांगइ , एहनी) पुत्र-मरण दुसह सुणी
सेठ छोड्या प्राण तुरत रे ,
भाग्य जाग्यउ पणमइ जे परनर विरूपउ चीतवइ ते पातइ पामइ झप्ति
भाग्य जाग्यउ पलमइ ॥१११ एह वात राजा सुणी ,
तेडइ दामन्नक निज पास रे , भा० कीधउ सेठनउ गृहपति , हिव भोगवइ लीलविलास रे भा०
॥११२. भा० अनाबाध साधइ सदा ,
पुरषारथ तीने नित्त रे , भा० धरम अहोनिसि आदरइ
मुख बोलइ भाषा सत्य रे भा०
॥११३. भा० न करइ खल संगति
कहे दातार न शंकारइ संग रे , भा० पडिलाभइ मुनि सुधउ
आहार वसन मनरंग रे भा०
॥११४. भा० सगुरु समीपइ सांभलइ
सिधांततणा सुविचार रे , भा० दीन दुखी जन्मउ धरइ
अनेक करइ उपगार रे भा०
।।११५. भा० इम उत्तमि मारगि चालतां एक दिन इक भट्ट सुजाण रे , भा० आवि भणइ गाथाइ इसी , तिण रंज्यउ सुणउ प्रमाण रे भा० ।
||११६. भा०
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यथा
गाथा
अणुपुंखमावहता आवया सहु-दुक्खच्छपडओ जस्स गाथा अस्थ विचारिनइ लक्ष तीन दिनार दे भलुं ,
सकल नगरलोके काउ विलसइ ए धन पारकर
तेडावइ नृप शेठनइ एतलउ दान किम आपीयउ
तस्स संपया हुंति । कयंतो वहइ पक्खं ॥११७ आपवीतग वात जाणी रे , भा० भाख्युं मनसुं सुहात रे भा०
॥११८ राजानइ एह वृत्तान्त रे , भा० तिण आपीइ मनुज अचीत रे भा०
- ॥११९ मूंकीनइ अनुचर एग रे , भा० कहउ शेठ तुम्हे वडवेग रे भा०
॥१२० मूल थकी आप वात रे , भा० तोसुं थइ माहरउ हित रे भा०
॥१२१ कीधउ नगरी केरउ आधक्ष रे , भा० देखउ धरमना फल परतक्ष रे भा०
॥१२२ विहरता देस परदेस रे , भा० संभलावउ प्रभुजी देस रे भा०
कहइ वृत्तान्त ते तिण समइ सांभलि राजा इम भणइ
पूख पुण्य प्रभावथी, सहकउ मानइ तेहनइ
इण अवसरि गुरु आवीया , दामन्नक आवी कहइ
॥१२३
मुनिवर दीधी देसना जैन धरम तिहां पडवज्यउ
प्रतिबुधउ तेण तिणवार रे , भा० पालइ ते निरतीचार रे भा०
॥१२४
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पूरण पाली अउखड वलि नरभव पामी करी,
दीक्षा लेइ अनुक्रमइ प्रतिबोधी बहु भविजन
विरति तणा फल इम सुणीए, श्रीजिनवर इम उपदेश्यो ए,
ए संबंध वखाणीयउ ए, तिणयी एनइ ए दाखव्यउ ए,
तुं छउ अधिकउ जे कह्यउ ए, जिण कारण छदमस्तनउ ए,
ढाल-१०
( भरतनृप भावसुं ओ, एहनी
श्रीखरतरगच्छ दिनकरु ए रोहड वसइ परगडउ ए
तासु सीस मतिसर गुरु ए तसु शिष्य सुमतिसागर भला ए,
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दूहा
हु
महधिक दे रे . करिस्यइ जिन भ्रम सेव रे.
पामी केवलनाण
लहस्य पूनिरवाण
वृत्ति आवश्यकमांहि, वि० मनमां धरीय उच्छाहि. वि०
)
दामनक कुलपुत्र विरति धरम आदर फल पचक्खाण वस्त्र वि०
मिच्छामि दुक्कखडताम्, वि० चंचल वचन विलास. वि०
युगवर श्रीजिनचंद्र, वि० जिण प्रतिबोध्या नरेंद्र. वि०
पुन्य प्रधान उवझाय वि० पाठक पंडितराय. वि०
।। १२५
॥ १२६
॥१२७
॥ १२८
॥१२९
||१३०
॥१३१
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साधुरंग वाचकवरु ए तासु सीस जगि जाणीय ए
सकल शास्त्र प्रवीण , वि० पाठक श्रीराजसार. वि०
॥१३२
तासु सीस इणपरि भणई सतरइसइ पइत्रीस समइए ,
ज्ञानधरम हितकार , वि० विजयदशमि रविवार. वि०
॥१३३
शांतिनाथ सुप्रसादथी राजइ धर्मसूरिंदनइ ए ,
रचीयउ ए अधिकार , वि० रचीया खंभात मजार. वि०
॥१३४
भवियण भणतां सुख लहइ ए , अधिकारइ पचकाणने ,
सुणतां कान पवित्र , वि० दामन्नकचरित्र. वि०
॥१३५
वीरत करो गुरुमुख विधे ए , भंगा गुण पंचाससू ए ,
धरि छंडी आगार , वि० तुं सिद्धि पलणहार. वि०
||१३६
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कठिन शब्दार्थ (कौंसमां आपेल प्रथम अंक कडी क्रमांक अने बीजो अंक चरणनो क्रम
दर्शावे छे.)
अउखउ (१२५,१) आयुष्य | खंजनी (२३,३३) ढोलियो, एक अदीठ (६०,४) अदृश्य करवं, मारी | प्रकारनुं बेसवार्नु आसन नाखवू
गात (७८,२) गात्र, अंग अनाबाध (१३१,१) मुश्केली (बाध) गेह (८३,४) गृह, घर वगर
गोधुलक (९४,४) गोरजनो समय अपछरा (८५,४) अप्सरा, परी चंगेरी (१०५,२) फुलदानी अर्जीयउ (५९,३) कमावू, रळवू झति (१११,४) झडपथी, त्वराथी अरउ (२२,१) आरो (जैन धर्ममां त्रिपति (५३,४) तृप्ति काळना छ भाग पाडी दरेक दह (३०,२) झरणु भागने आगे कहे छे)
दुरवातई (५१,४) खराब पवनथी असि (४२,४) तलवार
दुहेली (५३,४) मुश्केलीथी अहिनाण (७६,२) निशानी, ओळख दीनरउ (९४,३) दिवस चिह्न
ध्रम (१२५,४) धर्म अंब (५१,४) आंबो
पडवज्यउ (१२४,३) स्वीकार करेलुं , आऊखउ (१८,३) आयुष्य
___ कबुल करेलु आधक्ष (१२२,२) अध्यक्ष, नगरशेठ
| परगडउ (१३०,३) प्रगटवू आस्या (५५,३) आशा
पुरंदर (८५,२) इंद्र उच्छाह (१२८,४) उत्साह, उमंग
बगसीस (११०,४) बक्षिस उछाहि (१०३,४) आनंद, हर्ष
मुडी (३७,४) तुटवू , कापवू कल्पांत (२१,२) प्रलय
मुढ (७०,२) मूर्ख, गमार कारिज (८०,४) कार्य
मेटी (२३,२) मोटी कुंकर (५२,३) कुतरा
रंज्यउ (११६,४) आनंदित थर्बु, खुश थQ
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________________ 70 रीव (36,4) चीस, पोकार विस्तरीयउ (45,3) फेलावू, प्रसर रीहड (130,3) एक गच्छनुं नाम | वीभक्त (107,4) वहेंचायेलुं आकाश लाछि (54,4) लक्ष्मी (दिवस अने रात वच्चे) वडवेग (120,4) झडपथी, मोटेथी व्यवहारीयउ (44,1) वेपारी वरतीये (26,3) व्रतधारण करनार, साधु / सइधउ (62,3) संधि वस्तार (49,1) वरस सखरउ (62,1) साकर, खांड वंच्यउ (26,3) छेतरवू, भरमाव, | सयण (51,2) स्वजन वाधउ (48,2) मोटु थर्बु, विकसवें संवेग (20,1) मोक्षनी अभिलाषा विणसाड्यउ (68,2) नुकसान कर सीख (39,1) विदाय विलसइ (119,3) वेडफq, दुर्व्यय करवो सोहला (96,3) मंगळगीतो, लग्नगीतो विवरइ (52,3) छींडु, बखोल