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यथा
गाथा
अणुपुंखमावहता आवया सहु-दुक्खच्छपडओ जस्स गाथा अस्थ विचारिनइ लक्ष तीन दिनार दे भलुं ,
सकल नगरलोके काउ विलसइ ए धन पारकर
तेडावइ नृप शेठनइ एतलउ दान किम आपीयउ
तस्स संपया हुंति । कयंतो वहइ पक्खं ॥११७ आपवीतग वात जाणी रे , भा० भाख्युं मनसुं सुहात रे भा०
॥११८ राजानइ एह वृत्तान्त रे , भा० तिण आपीइ मनुज अचीत रे भा०
- ॥११९ मूंकीनइ अनुचर एग रे , भा० कहउ शेठ तुम्हे वडवेग रे भा०
॥१२० मूल थकी आप वात रे , भा० तोसुं थइ माहरउ हित रे भा०
॥१२१ कीधउ नगरी केरउ आधक्ष रे , भा० देखउ धरमना फल परतक्ष रे भा०
॥१२२ विहरता देस परदेस रे , भा० संभलावउ प्रभुजी देस रे भा०
कहइ वृत्तान्त ते तिण समइ सांभलि राजा इम भणइ
पूख पुण्य प्रभावथी, सहकउ मानइ तेहनइ
इण अवसरि गुरु आवीया , दामन्नक आवी कहइ
॥१२३
मुनिवर दीधी देसना जैन धरम तिहां पडवज्यउ
प्रतिबुधउ तेण तिणवार रे , भा० पालइ ते निरतीचार रे भा०
॥१२४
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