________________
52
(४
राजसारशिष्यज्ञानधर्मकृत
दामनककुलपुत्रकरास स्वस्ति श्री मंगलकरण , प्रशमी पास जिणंद श्रुतदेवी सद्गुरु नमुं, टालई भव-दुख-फंद. श्रीजिनवर ईम उपदेशई , मनवंछित दातार, धरमामाहि प्रधान छई ,
विरतिधरम श्रीकार. तिणि उपरि दृष्टांत ,
ए सुणज्यो चतुरसुजाण , कुलपुत्रक दामन्नकई ,
जिम कीधउ पचक्खाण. तासुं कथा हु वर्णवू ,
सांभलिज्यो सहु कोय , पाप-तिमर दूरइ हरई ,
दिनकर-कर जिम सोय.
ढाल-१ चउपइनी जंबुद्वीप एहिज विख्यात , दक्षिण दिशा तिहां भरत कहात, गजपुर नामई नगर उदार , ऋद्धि तणउ जिहां को नही पार. ॥५ सुनंद तिहां कुलपुत्रक एक , वसइ विचक्षण अति सुविवेक भद्रक नइ सुविनित प्रवीण , सकल गुणे संपन्न न हीण. ॥६ जिनदासक श्रावक छई तसुमित्र , धर्म-बुद्धि करि गात्र पवित्र , जिनधर्मी गुरुभक्त दयाल , त्यागी भोगी नइ चउसाल. ते बेहुनइ अधिक सनेह , चित्त एक जूजइ देह , दंभरहित ते पालइ प्रीति , उत्तम-कुलनी एहि ज रीत. ॥८ इण अवसरि उद्यान मझार , समवसर्या गिरूआ गणधार , धर्मधोष नामई गुणवंत , ज्ञान क्रिया सोभित उपशांत. ९ दशविध साधु धरम जे धरई , सर्व जीवनी रक्षा करई , क्रोधादिक कीधा सहु दुर , सतरभेद संयम भरपुर.
॥७
।।१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org