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शेठ एक तिहां किण वसइ रे , आस्या घरिनइ आवीयउ रे,
तिण अवसर तिहां विहरता रे, करइ अभिग्रह नवनवा रे,
मुनिवर बेहु गोचरी रे , वृद्ध कहइ लघुसाधुनइ रे ,
ए घरनउ पति ए हुस्यइ रे, एक भीतिनइ अंतर रे ,
सागरपोत समृद्ध रे, बा० देखी मंदिर वृद्ध रे , बा०
॥५५. तु० धरता धूनउ ध्यान रे , बा० चाढइ संयम-वान रे , बा०
॥५६. तु० आवइ सेठ-दुवार रे , बा० सामुद्रक अनुसार रे , बा०
५७. तु० बालक थयउ युवान रे , बा० सेठ सुणी वात कान रे , बा०
॥५८. तु० मनमां धरीय विषाद रे , बा० भोगवस्यइ कांइ स्वाद रे , बा०
५९. तु० सत्यवचन नहीं जूठ रे , बा० एहनइ करूं अदीठ रे , बा०
॥६०. तु० अंकुरनी उत्पत्ति रे , बा० पाडु तासु विपत्ति रे , बा०
॥६१. तु० भोलवइ सागर बाल रे , बा० पाडइ ते तकाल रे , बा०
॥६२. तु.
वज्राहत सम ते थयउ रे, कष्ट करी धन अर्जीयउ रे,
चारित्रीयइ बोल्यउ तिको रे, तउ हिव मनमा चीतवइ रे ,
बीज बल्यां किम होइसी रे, एह विचार चित चीतवइ रे ,
मोदक सखरउ आपिनइ रे, सइघउ कर्यउ चंडालनइ रे ,
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