Book Title: Chintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Author(s): Vijaymuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 13
________________ चिंतामणि पार्श्वनाथ इसके बाद मरुभूति का जीव वैताढ्य पर्वत पर किरणवेग नाम का राजा बना। राजा किरणवेग बहुत ही शांतिप्रिय और संसार के प्रति अनासक्त भाव रखते थे। वह अपने पुत्र को राज्य सौंपकर श्रमण बन गये और जंगल में तप ध्यान करने लगे। Simpala मुनि ने भी सर्प को पहचान लिया। वह बोले सर्पयोनि से निकलकर कमठ अगले जन्म में फिर भयंकर | विषधर नाग बना। जंगल में मुनि को ध्यानस्थ देखकर | उसका पुराना वैरभाव जाग गया। हे सर्पराज! क्रोध त्यागो! बैर को भूल जाओ। इसी बैर-भाव के कारण तुम दुर्गति में भटका रहे हो। अरे ! यह तो मरूभूति का जीवहै। इसी के कारण मुझे अपमान तिरस्कार सहना पड़ा। आज इसका बदला चुका दूंगा। S E /II परन्तु क्रोधित सर्प ने मुनि के शरीर को डंक मार-मारकर छलनी कर दिया। मुनि अपने समाधि भाव में स्थिर रहे। और शान्तिपूर्वक शरीर छोडकर स्वर्ग में देव बने। वह ध्यान में मग्न मुनि के शरीर पर लिपट कर डंक मारने लगा। Is Personal Use Only www.jainelibrary.org

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