Book Title: Chintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Author(s): Vijaymuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 24
________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ यवनराज ने पार्श्व कुमार के अद्भुत बल पराक्रम के विषय में पहले से ही सुन रखा था। जब उसने उनके दिव्य रथ और अमेय अस्त्रों के बारे में सुना तो वह और भी भयभीत हो गया। अपनी जान बचाने के लिए पार्श्व कुमार की शरण में जा पहुंचा। हे पार्श्व कुमार, मुझे क्षमा कीजिये! मैं आपसे युद्ध नहीं, मैत्री चाहता हूँ। मेरी ओर से ये तुच्छ भेंट स्वीकार करें। ASAR ENA यवनराज ने पार्श्व कुमार को स्वर्ण-मणि-मुक्ताहार की भेंट दी और वापिस लौट गया। जब राजा प्रसेनमित को, यवनराज द्वारा पार्श्व कुमार के सामने सर्मपण करने की खबर मिली तो वह सपरिवार पार्श्व कुमार का अभिनन्दन करने नगर के बाहर उद्यान में आये। पार्श्वकुमार ! आपका MAA और महाराजाधिराज अश्वसेन का हम पर असीम उपकार है। अब आप मेरी पुत्री प्रभावती को स्वीकार करके एक उपकार और करें। NIRGOOKC ELLICH पार्श्वकुमार राजा प्रसेनमीतं का प्यार भरा आग्रह टाल न सके, पिता की स्वीकृति मँगाकर उन्होंने वहीं राजकुमारी प्रभावती के साथ विवाह किया। और उसे लेकर वापिस वाराणसी को लौट आये। 22 Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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