Book Title: Chintamani Parshwanath Diwakar Chitrakatha 04
Author(s): Vijaymuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 28
________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ श्रद्धा भाव पूर्वक नमोकार मन्त्र सुनकर नाग युगल को बड़ी शान्ति मिली। सद्भावों के साथ प्राण त्यागते हुये वह सर्प युगल अगले जन्म में नाग कुमार जाति के देवों के इन्द्र-इन्द्राणी धरणेन्द्र एवं पद्मावती हुए। यह दृश्य देखकर जनता की श्रद्धा कमठ पर से हट गई। वे उसे धिक्कारने लगे। जनता द्वारा तिरस्कृत होकर कमठ मन ही मन खिसिया उठा। Jain Education International इस दुष्ट पार्श्व कुमार मेरी वर्षों की तपस्या पर क्षण भर में पानी फेर दिया। मैं इसका बदला लूँगा। वह नगर से दूर जंगल में जाकर उग्र तप करने लगा। बदले की मलिन भावना मन में लिये तप करता हुआ कमठ मरकर मेघमाली नाम का राक्षस बना। Gr 26 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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