Book Title: Charcha Shatak
Author(s): Dyanatray, Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 10
________________ श्रीवीतरागाय नमः । स्व० कविवर द्यानतरायजी कृत चरचाशतक | सुगमटीका सहित । मंगलाचरण | पंचपरमेष्ठीकी स्तुति, छप्पय । 'जय सरवग्य अलोक लोक इक उडवत देखें । हस्तामल ज्यौं हाथलीक ज्यौं, सरव विसेखें ॥ छहौं दरव गुन परज, काल त्रय वर्तमान सम । दर्पण जेम प्रकास, नास मल कर्म महातम || परमेष्ठी पांचौं विघनहर, मंगलकारी लोक मैं | मन वचन काय सिर लाय भुवि, आनंदसों द्यौं धोक मैं ॥ १ ॥ अर्थ-वे सर्वज्ञ भगवान् जयवंत हों, जो कि लोक सहित अलोकको आकाश एक तारेके समान, हथेली पर रक्खे

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